पलाश

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aditi rusiya
देखो फागुन आया फागुन आया
वन उपवन पर यौवन छाया
फूले टेसु देखो लाल लाल
सारा उपवन हुआ अंगारे सा लाल

पिय से मिलन की फिर प्रीत जगी
राधा की बाँछें भी खिल उठी
संग कान्हा के जो प्रीत लगी
रास रचाने फिर एक आस जगी

दहकने लगा बदन *पलास* सा
यौवन छाया दहकते अंगारों सा
चुनरी पे भी ख़ुमार छाया आज
सर सर सरके सर से आज

नटखट कान्हा के संग खेलन होरी
बैठी संग सखियों बावरी राधा गोरी
भर पिचकारी मारी कान्हा ने
रंग दी लाल चुनरिया कान्हा ने

सकुचाई सिमटी सी बैठी राधा रानी
लाज़ शरम के भई फिर पानी पानी
कान्हा के रंग रंगी राधिका
मले अबीर गुलाल कान्हा को राधिका

निखर गया तन श्याम रंग रंग के
तन मन वारा श्याम रंग रंग के
चुनरी रंग ली श्याम के रंग रंग के
लोक लाज छोड़ी वंशी धुन सुनके

हुआ पलास को आज घमंड है
रंगा जो उसने राधा का अंग है
सूरज की चमक भी आज कम है
क्योंकि दहक रहा आज टेसु का यौवन है

#अदिति रूसिया

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