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अब कहाँ हैं वो झूमते मौसम ।
हर सू हैं बस बुझे बुझे मौसम ।
अब दरीचे रहे न वो गलियाँ ।
न कहीं इन्तज़ार के मौसम ।
दूर तक छाँव है न कोई शजर ।
धूप से तिलमिला रहे मौसम ।
शब के होंठों पे लिख गया कोई इश्क़ ।
सुब्ह से मुस्करा रहे मौसम ।
चश्म में कौन लिख गया है नमी ।
ज़िन्दगी में ये रेग के मौसम ।
कोई रिश्ता नहीं मेरा मुझ से ।
फिर मुझे क्यों तलाशते मौसम ।
एक पल की ख़ुशी की आस में अब ।
जीते मरते किसान से मौसम ।
#डॉ अशोक गोयल ,गुना
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