एक दौर था,जब साहित्य प्रकाशन के लिए रचनाकार प्रकाशकों के दर पर अपने सृजन के साथ जाते थे या फिर प्रकाशक प्रतिभाओं को ढूँढने के लिए हिन्दुस्तान की सड़कें नापते थे,परंतु विगत एक दशक से भाषा की उन्नति और प्रतिभा की खोज का सरलीकरण `सोशल मीडिया` के माध्यम से हुआ […]
मातृभाषा
मातृभाषा
क्या राष्ट्रवाद की अधिकता साम्राज्यवाद, फांसीवाद में परिणित हो जाती है ? जी हाँ,राष्ट्रवाद की अधिकता का परिणाम भी साम्राज्यवाद,फांसीवाद में देखा जा सकता है। जब कोई राष्ट्र,राष्ट्र निवासी अपनी सांस्कृतिक,ऐतिहासिक परम्परा में ग्रस्त होकर मोहान्ध हो जाता है,तब ऐसी स्थिति को देखा जा सकता है। एक राष्ट्र, निर्वासित जाति […]
