हाहाकार मची चहुँ ओर पसरा सन्नाटा है, कश्मीर से दिल्ली तक बारूद का बोल बाला है। भाषा की अभिव्यक्ति मिली, ये टुकड़े भारत के करते हैं। जिस थाली में ये खाते नापाकी उसमे ही छेद करते हैं। बहुत मांग चुके आज़ादी अब इनको सबक सीखाना है, पथ्थर बाजो को उनकी […]
काव्यभाषा
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