धनिया धनवन्ती जी बनकर, झाड़ू-पोंछा-बर्तन तज कर बनकर सुशिक्षिता गाँवों में, अपना उद्योग चलाएगी। कोई न किसी का चर होगा, मजदूर-कृषक साक्षर होगा जब रधिया कोरे कागज पर, अंगूठा नहीं लगाएगी। जब तज कर यह बंदूकराज, आतंकहीन होगा समाज कोई गोली आकर गांधी का, सीना चीर न पाएगी। फिर मिलकर […]
Uncategorized
(रस-श्रृंगार रस (वियोग श्रृंगार),वियोग श्रृंगार का पहला प्रकार-पूर्वराग,आलंबना -कृष्ण,उद्दीपन-एकांत,ऋतु,अनुभाव- निष्प्राण और संचारी भाव-जड़ता है) विरह हृदय पर नयन पसारो॥ श्यामल अंबर वृंदावन है,आओ कुंज विहारो। कंचन तन अरु मन मधुवन है,आकर मोहिं निहारो, सकल जगत निष्प्राण हुआ ज्यों,उर जड़ता को हारो। राधा हूँ, पिय अंतर्मन की, इव दुख बोझ उतारो। […]