लिखता इमारतों के आसमानी गुरूर की इबारत लुटा दी, जिसके लिए देहातों ने अपनी अल्हड़ यौवन की पूंजी ले सतरंगी सपनों की झिलमिल जो आए थे माया के नगरों में बुझ गई, उम्मीदों की मशालें तमाम बचे अंगारों की राख, करते नीलाम, गुलामी के बाजारों में तड़पते, बिलखते, भूखे बचपन […]
