में जानती हूँ मैं तुममें ही हूँ कहीं, हाँ मग़र, मुखर नहीं। अंतर में गहरे दबी रहती हैं ज्यों जड़ें और गहरे और गहरे अतल में.. चुपचाप पोसती हैं अंतिम छोर को फिर भी एकाकार होकर भी अभेद्य होकर भी मुखर नहीं..। ———- #विजयलक्ष्मी जांगिड़ परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में […]