रिमझिम की फुहारे बरसीं, देखो खेतों में हरियाली छाई, सावन की ऋतु आई, घनघोर घटाएं छाईं। जैसे हरी भरी चुनरिया पहने, धरती माँ की आभा लौट आई, रिमझिम की फुहारे बरसीं, देखो खेतों में हरियाली छाई। आषाढ़ बीता अब तो सावन आया, प्रकृति मंद–मंद मुस्काई, सूखी पड़ी धरा थी जैसे, […]