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बहुत रोका मगर ये कब रुके हैं, ये आँसू तो मेरे तुम पर गए हैं। जो तुमने मेरी पलकों में रखॆ थे, वो सपने मुझको शूलों से गड़े हैं। न सीता है, न अब है राम कोई, चरित्र ऎसे कथाओं में मिले हैं। जो आने के बहाने ढूंढते थे, वो […]

जमाने के कई रंग देखे हैं हमने, कभी तपती धूप,कभी बारिश में उजाले देखे हैं हमने। जो इंसा सब कुछ खोने को तैयार है हमारे लिए, उसी के काले निवाले देखें हैं हमने। जब से होश संभाला है,धरती पर रेंगता है इंसान, उसी इंसान को उड़ती हवाओं में देखा है […]

आज सुबह सड़क किनारे, बारिश के पानी से लबालब गंदी बस्ती में कुछ नंग-धड़ंग मासूम से दिखते बच्चों को कूड़े के ढेर में पड़ी जूठन के लिए मुहल्ले के भूखे खूंखार कुत्तों से लोहा लेते देखा। कुछ बुजुर्गों को उघाड़े बदन, खून से रिसते घावों के साथ टूटी चारपाई पर लोट-पोट होते देखा, स्वस्थ भारत में योगा करने की असफल कोशिश कर रहे थे शायद। इस सबके बीच नशामुक्त भारत की सशक्त नारियों को उनके बेरोजगार पतियों के हाथों लहूलुहान होने का एक दृश्य अकस्मात ही चौंधियाईं आंखों के सामने से तेजी से निकल गया। वहीं इलाज के अभाव में, मृत पत्नी को कंधे पर ले जाते उस युवक ने अकस्मात ही मेरे अंतस को झकझोर कर रख दिया। `सबका साथ सबका विकास` के नारे की हकीकत कुछ इस तरह मेरे सामने से गुजर जाएगी, ऐसी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी तेज कदमों के साथ इस अनछुए भारत को वहीं छोड़कर नज़रें झुकाकर मैं वापस इक्कीसवीं सदी के अपने सपनों के भारत की ओर लौट पड़ा।       #मनोज कुमार यादव Post Views: 670

सुने जो तेरे ये हालात,दिल डूब गया, चला था मैं जो तुम्हें जीना सिखाने, ख़ुद ही भूल गयाl न मेरे पास वो अल्फ़ाज़ बचे, न दिल में अब वो साहस है.. कैसे समेटूँ मैं तुझको, देख के तेरे ये ग़म , मैं ख़ुद ही बिखर गयाl हर आँसू को पी लेना, हर ग़म को हंस के जी लेना.. यही तो कहता रहा मैंl मगर देख के तेरे आँसू, मैं ज़िंदादिली भूल गयाl #डॉ.संजय यादव परिचय : राजस्थान के ज़िला-झुंझनू में डॉ.संजय यादव का मूल निवास हैl गाँव-पचेरी छोटी(तहसील-बूहाना) के डॉ.यादव की शिक्षा एमबीबीएस है,और वर्तमान में दिल्ली में ही रहकर कार्य कर रहे हैंl ग़ज़ल,कविताएँ और मुक्तक लिखने का शौक रखते हैंl सामाजिक […]

राही हूँ इस सफ़र का, तो हिस्सा हूँ किसी क़ाफ़िले का, मंज़िल मेरी मुझे कहीं नज़र न आई, सफ़र तय कर आया मीलों का॥ दुनिया की भीड़ में शामिल हूँ, अलग से मेरी कोई  पहचान नहीं, ख़ुद से बेख़बर दौड़ रहा हूँ वो दौड़, जिसका कोई अवसान नहीं॥ पैरों तले […]

कब तक भारत भू पर ऐसे निष्कपूतों को झेलोगे, केवल कुर्सी के स्वार्थ में आकर लोकतंत्र से खेलोगेl के गाकर पाकिस्तान का जो,अब भी भारत में लेटे हैं, कैसे कह दूँ कि,ये सारे एक बाप के बेटे हैंl अरे मिमियाना अब बंद करो,भाषा बोलो फौलादों की, खाल खींच दो जयचंदों […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।