सुरक्षित हैं बेटियां, मेरे मुल्क आज़ाद में, खामियाँ जितनी भी हैं, बस मेरे किरदार में। छोड़ा है जबसे हमने, संस्कारों के संसार को, उच्छ्र्न्खलता बढ़ रही, हम सबके व्यवहार में। कद्र थी माँ बाप की औ’, समाज का भी भान था, अभिव्यक्ति की आज़ादी पा, बढ़ रहे दुराचार में। […]
काव्यभाषा
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