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चिरागां आंधियों में जल रहा है,
चलो कुछ तो अंधेरा ढल रहा है।
सुदिन है चांडालों तस्करों का,
शरीफों का बुरा दिन चल रहा है।
अगर हम खा रहे हैं एक में ही,
हमारा घर तुम्हें क्यों खल रहा है।
शनिश्चर आ गया है अब वहां भी,
अभी कल तक जहां मंगल रहा है।
कभी वेतन नहीं मिलता समय से,
कहूं क्या,यह बहुत ही खल रहा है।
फजीहत मिल रही चारों तरफ से,
परिश्रम का यही प्रतिफल रहा है।
गया उसमें भी काला दाग पकड़ा,
सुना है जो बहुत उज्जवल रहा है।
समस्या और की समझेगा कैसे,
स्वयं जो प्रिंस जैसा पल रहा है।
मुकदमा अब उन्हीं बातों पे चलता,
महज सौहार्द्र जिसका हल रहा है॥
#डॉ.कृष्ण कुमार तिवारी ‘नीरव’
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