Read Time3 Minute, 12 Second
मानव क्यों व्याकुल है तू
क्यों व्यथित-सा फिरता है,
तू तो खुद नारायण है
तेरे भीतर भगवान बसता है।
राम नाम का जाप करता
क्यों मन्दिर,घाटों में भटक रहा,
मृगतृष्णा के जाल में फँसकर
क्यों भ्रम में तू सिमट रहा।
अपने अन्तर्मन् के मन्दिर में
ज्ञान का दीप जला ले,
अपने ह्रदय के अंधकार को
पल में तू हटा ले।
मन चंगा हो हमारा
तो कटौती में गंगा मिल जाती है,
जीवन की सच्चाई अक्सर
हमें समझ नहीं आती है।
सोच अपनी पावन रख
परोपकार के कर्म कर,
नैतिकता के मार्ग पर चल
पाप कर्म से हमेशा डर।
तेरे कर्म ही तुझको प्राणी
प्रभु से कभी मिलाएंगे,
तेरे अन्दर के भगवान् एक दिन
बाहर निकलकर आएंगे।
बाहर निकलकर आएंगे…॥
#अनुभा मुंजारे’अनुपमा’
परिचय : अनुभा मुंजारे बिना किसी लेखन प्रशिक्षण के लम्बे समय से साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय हैं। आपका साहित्यिक उपनाम ‘अनुपमा’,जन्म तारीख २० नवम्बर १९६६ और जन्म स्थान सीहोर(मध्यप्रदेश)है।
शिक्षा में एमए(अर्थशास्त्र)तथा बीएड करने के बाद अभिरुचि साहित्य सृजन, संगीत,समाजसेवा और धार्मिक में बढ़ी ,तो ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों की सैर करना भी काफी पसंद है। महादेव को इष्टदेव मानकर ही आप राजनीति भी करती हैं। आपका निवास मध्यप्रदेश के बालाघाट में डॉ.राममनोहर लोहिया चौक है। समझदारी की उम्र से साहित्य सृजन का शौक रखने वाली अनुभा जी को संगीत से भी गहरा लगाव है। बालाघाट नगर पालिका परिषद् की पहली निर्वाचित महिला अध्यक्ष रह(दस वर्ष तक) चुकी हैं तो इनके पति बालाघाट जिले के प्रतिष्ठित राजनेता के रुप में तीन बार विधायक और एक बार सांसद रहे हैं। शाला तथा महाविद्यालय में अनेक साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर विजेता बनी हैं। नगर पालिका अध्यक्ष रहते हुए नगर विकास के अच्छे कार्य कराने पर राज्य शासन से पुरस्कार के रूप में विदेश यात्रा के लिए चयनित हुई थीं। अभी तक २०० से ज्यादा रचनाओं का सृजन किया है,जिनमें से ५० रचनाओं का प्रकाशन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में हो चुका है। लेखन की किसी भी विधा का ज्ञान नहीं होने पर आप मन के भावों को शब्दों का स्वरुप देने का प्रयास करती हैं।
Post Views:
328