आज कु. मनीषा सिंह को देखने (शादी के पूर्व) के लिए दुर्गा मन्दिर पर वर पक्ष के सभी लोग समय से पंहुच चुके थेl मनीषा की मां मान्ती सिंह भी ब्यूटी पार्लर से अपनी बेटी को खूब सजा-धजाकर उक्त स्थान पर समय से पहुंच चुकी थीl वधू पक्ष के लोग वर पक्ष के सभी आए मेहमानों को मीठा-पानी खिला-पिलाकर स्वागत कर चुके थे।
लड़के वाले लड़की को पसन्द भी कर चुके थेl अब बारी थी केवल लड़के को लड़की पसंद करने की। लड़के ने लड़की को देखने के बाद कहा-`बाकी सब कुछ तो ठीक है,पर लड़की हमें पसंद नहीं है।` मनीषा के पिताजी हक्के-बक्के होकर बोले- `बेटा,आखिर हमारी बेटी में कौन-सी कमी हैl हमें भी तो बताओ? हम भी तो जानें ?
`यही कि,आपकी लड़की सुन्दर नहीं है,और क्या?`-लड़का बड़ी शान से बोला। अभी सभी लोग कुछ कहने ही वाले थे कि,लड़की अपने पिता का मान-सम्मान जाते देख तपाक से बोल उठी कि-`हमें भी तो आप पसंद नहीं हो ?अपना मुंह कभी शीशे में देखा है? काले बन्दर की तरह दिखते हो तुम? चले हो विश्व सुन्दरी खोजने ? जाओ पहले दर्पण में अपना मुंह भी तो देखोl` लड़की भी निडर होकर बोल पड़ी थी।
`बेटा ऐसा नहीं कहतेl`-लड़की की मां ने समझाते हुए कहाl `मां,आप लोग हम लड़कियों से हमारी पसंद पहले क्यों नहीं पूछती हैं,जिसे हमें अपना जीवनसाथी चुनना है।` लड़की अपनी मां से प्रश्न पूछ ही रही थी कि,लड़की के पिताजी बीच में कहने लगे-`बात बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है हमेंl हमारी बेटी की पसंद ही हमारी भी पसंद हैl अब आप सब भी अपने घर की तरफ प्रस्थान करें और हम भी अपने घर की तरफ प्रस्थान करते हैंl हमें अपनी बेटी पर गर्व है,जो आज अपना भला-बुरा सोचने की समझ तो रखती है।`कहकर बड़े गर्व के साथ सबको साथ लेकर मुंह मोड़कर घर की तरफ चल दिए।
परिचय : रामभवन प्रसाद चौरसिया का जन्म १९७७ का और जन्म स्थान ग्राम बरगदवा हरैया(जनपद-गोरखपुर) है। कार्यक्षेत्र सरकारी विद्यालय में सहायक अध्यापक का है। आप उत्तरप्रदेश राज्य के क्षेत्र निचलौल (जनपद महराजगंज) में रहते हैं। बीए,बीटीसी और सी.टेट.की शिक्षा ली है। विभिन्न समाचार पत्रों में कविता व पत्र लेखन करते रहे हैं तो वर्तमान में विभिन्न कवि समूहों तथा सोशल मीडिया में कविता-कहानी लिखना जारी है। अगर विधा समझें तो आप समसामयिक घटनाओं ,राष्ट्रवादी व धार्मिक विचारों पर ओजपूर्ण कविता तथा कहानी लेखन में सक्रिय हैं। समाज की स्थानीय पत्रिका में कई कविताएँ प्रकाशित हुई है। आपकी रचनाओं को गुणी-विद्वान कवियों-लेखकों द्वारा सराहा जाना ही अपने लिए बड़ा सम्मान मानते हैं।