‘ठीक से बेलो’!
‘अरे पलेथन बार-बार क्यों लगा रही हो!`
‘कितने साल हो गए,बराबर रोटी बेलना नहीं आया!`
`कैसे बेलती हो? बीच में पतला-किनारे मोटा? गोल-गोल घुमाओ रोटी को!`
‘बराबर डालो तवे पर,अरे देखो मुड़ गया न..अब फूलेगा नहीं। १मिनट बाद ही कड़ा हो जाएगा!`
‘ठीक से सेंको! चिमटा साइड से दबाओ भई! अरे ये रोटी बीच से फूट गई!’
‘मैं तो आज भी रोटी बना दूँ तो,२ ऊँगली से टूट जाए और ३ निवाले में रोटी ख़तम!`
सास बोले जा रही थी और सरला चुपचाप शायद बीसवीं रोटी बना रही थीl
शादी के १८ साल बाद भी सुबह-शाम ४०-४५ रोटी बनाने के बावजूद उसके सास-ससुर के लिए न तो रोटी कभी गोल बेली गई थी,न बराबर और न मुलायम होती थीl रोटी का सौंधा होना तो दूर की बात थीl पति भी यदा-कदा बोल ही देते थे-माँ जो रोटी बनाती है,वो बात तुम में नहीं! बेचारी रोज़ सोचती,इतने अभ्यास वो किसी और बात में करती तो या तो ओलम्पिक पदक ला चुकी होती या साहित्य अकादमी!
एक साथ ३ जने खाने बैठे थेl सब गरम रोटी ही खाते थेl जल्दी-जल्दी हाथ चला रही थी,और उतनी ही तेज़ी से मन बाँध रही थीl कुछ भी तो नहीं बदला थाl जब ससुराल में उसने पहली बार रोटी बनाई थी,उस समय से आज तकl उस दिन भी माँ ने कुछ सिखा के नहीं भेजा था,और आज भी वो कुछ सीख नहीं पाई थीl अब तो ये आदत हो गई थीl रसोई समेट ही रही थी कि,बेटा खाने आ गयाl
खाना परोसकर उसके साथ ही बैठ गईl २ निवाले बाद ही बेटे ने कहा-`माँ! तुम्हारे जैसी रोटियों का स्वाद किसी के हाथ में नहीं! कितनी नरम रहती हैl कॉलेज में सब दोस्त बोलते हैंl ४ घंटे बाद भी बिल्कुल कड़ी नहीं होती,और कितनी गोल-गोलl`
बेटा बोले जा रहा था और सरला यही सोच रही थी-‘वही रोटी कैसे बदल जाती है जब बेटा खाता है,पति खाता है और सास-ससुर खाते हैं,माँ-बाप खाते हैं तो! रोटी भला कैसे बदलेगी? रोटी नहीं,हाँ शायद आदतें बदल जाती हैं तो रोटियां अलग-अलग हो जाती हैंl किसी को बोलते रहने की आदत,किसी को कमी निकालने की आदत,किसी को लाड़ की आदत,तो किसी को सिर्फ `माँ की आदतl`
वह जानती थी ५ साल बाद उसकी बहू आएगी,तो भी शायद यही होगा! बहू रोटी बनाएगी और शायद वह मीन-मेख निकालेगी! बेटा भी अपनी माँ की तारीफ़ करेगा,और पत्नी की रोटियां कमियों वाली लगेगीl फिर उसके कुछ सालों बाद वही रोटी बहू के बच्चों के लिए दुनिया की सबसे सौंधी रोटी बन जाएगीl
‘यह शायद पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे चलती रहेगी,जैसे पीढ़ी-दर- पीढ़ी चलती आई हैl कोई नहीं सोचेगा कि,जो रोटी बना रहा है वह क्या महसूस करता होगा! उसे तो महसूस करने का शायद अधिकार भी नहींl’
मगर उसने सोचा-इसे कहीं तो रोकना होगाl वो खुद के लिए नहीं रोक पाई,मगर शायद अगले के लिए रोक देl अपने बच्चे को ‘रोटी’ समझाएगी,किसी रिश्ते की आदत या रिवायत नहींl शायद वो ही कुछ बदल दे,ताकि आने वाले सालों में उसके घर में सिर्फ रोटी पके,कोई आदत नहीं…l
#स्वाति’वल्लभा राज’
परिचय: स्वाति का वर्तमान पता ऐरलेंगन(जर्मनी)हैl १९८८ में जन्मीं स्वाति का साहित्यिक उपनाम-वल्लभा राज हैl आपका जन्म स्थान-सिवान (बिहार) तथा शिक्षा-एमबीए हैl स्वतंत्र लेखन ही कार्यक्षेत्र हैl सिवान की स्थाई निवासी होकर आप सामाजिक क्षेत्र-गतिविधि में पीरियड्स,यौन शिक्षा,दहेज़, और भ्रूण हत्या सहित कई विषयों पर विद्यालय-महाविद्यालय में सम्बोधन कर चुकी हैंl लेखन की बात करें तो लेख,हास्य, कविता,हाइकु,तांका,चोका और लघुकथा आपकी रुचिगत विधा हैl आप सामाजिक मुद्दों पर ब्लॉग पर भी अपनी बात रखती रहती हैंl कई अखबारों में रचना प्रकाशन के साथ ही आप राष्ट्रीय-क्षेत्रीय पत्रों में स्तम्भ लेखन भी करती हैंl आपकी रचनाओं पर एक पत्रिका,कलरव-साझा हाइकु-तांका संकलन तथा ह्दय तारों का स्पंदन-साझा कविता संकलन भी प्रकाशित हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-सामाजिक समस्याओं पर जागरुकता लाना हैl