माँ तेरा नहीं पर्याय, धरा-सा आँचल, नभ सी छाँव,
सहा नौ माह का दर्द, मेरे हर दर्द में फैला दी बांह।
झील-सी ठंडी, समुद्र-सी अथाह सरिता-सी अविरल,
संक्षिप्त नहीं हो, तुम पर क्या लिखूँ? हे निश्छल!
ईश्वरीय कृति, जब अथाह प्यार सिमटे संसार में आई,
हर रिश्तों में रची-बसी और रिश्तों में ही समाई ।
बेटी, बहन, बहू, कहीं दुल्हन, हर रूप का तेरे सार,
हर रूप में दिया तूने प्यार, संभाले दो संसार।
त्याग और ममता की मूरत, देखने तेरा रूप बार-बार,
राम-कृष्ण रूप में, जन्मे नयनाभिराम अवतार।
परिवर्तन में भी जो कभी परिवर्तित न हुई,
अद्भुत, अविरल, अनंत-सी, प्रेम-अस्तित्व में खोई।
हे ईश्वर! अपनी कृति को यूं ही बनाए रखना,
बदल देना दुनिया सारी, पर इसे
न बदलना।
#संध्या रामप्रसाद पाण्डेय
अलीराजपुर (मध्य प्रदेश)