कविता हिंसा के खिलाफ अहिंसात्मक विद्रोह है-कवि श्री सत्तन
इंदौर। कवि जन जागरण का काम करता है। जिस समय भारत का स्वतंत्रता का आंदोलन चल रहा था, उस समय मैथिलीशरण गुप्त की कविता ‘भारत भारती’ ने लाखों नौजवानों को देश के लिए आगे बढ़ने और मर मिटने के लिए प्रेरित किया था। जब कवि अपने जन जागरण की स्थिति में होता है या कविता जन जागरण की स्थिति में होती है, तो वह जनता को प्रेरणा प्रदान करती है और उसे जागृत करती है। हिंसा के खिलाफ कविता एक अहिंसात्मक विद्रोह का काम करती है।” यह बात राष्ट्रकवि श्री सत्यनारायण सत्तन ने चंद्रा सायता की गीतों की किताब “गीत रंगोली” के लोकार्पण के प्रसंग पर कही।
मुख्य अतिथि के रूप में मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ विकास दवे ने कहा कि, “चंद्रा जी सिंध से हिंद में आकर हिंद की बेटी बन गई हैं। शिप्रा के तट पर वह खेली कूदी और बढ़ी हैं। उन्होंने अपनी मिट्टी की याद को अपने गीतों में संजोकर रखा है। उनकी कविता छंद बद्ध भी है और छंद मुक्त भी है। उन्होंने किसी प्रकार के अनुशासन का आग्रह नहीं रखा है। जहां उनका मन किया है वहां वह कल कल कल बहने लगी हैं। जहां उन्हें लगा कि यहां पर छंद का प्रबंध मानना चाहिए वहां पर माना भी है। उनकी कविताओं में रंगोली की उन्मुक्तता भी है और रंगोली की बिंदु से बिंदु वाली प्रतिबद्धता भी है।”
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित आष्टा के युवा कवि आदित्य हरि गुप्ता ने इस पुस्तक की भूमिका लिखी है। उन्होंने न सिर्फ अपने लेखन का कुछ अंश प्रस्तुत किया अपितु चंद्रा जी के गीत को सस्वर प्रस्तुति भी प्रदान की।
नगर की साहित्यिक संस्था “क्षितिज” के द्वारा आयोजित इस लोकार्पण और चर्चा संगोष्ठी के कार्यक्रम में सर्वप्रथम सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण, दीप प्रज्वलन, सांवरी सिद्धवानी की सरस्वती वंदना की गई। अपनी पुस्तक पर चंद्रा सायता जी ने प्रस्तुति दी। उन्होंने अपने कुछ गीत सस्वर प्रस्तुत किए।
अतिथियों का स्वागत संस्था के अध्यक्ष सतीश राठी, सचिव दीपक गिरकर, कोषाध्यक्ष सुरेश रायकवार एवं चंद्रा जी के कुछ परिवार जनों ने किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन चोइथराम स्कूल की हिंदी की विभागाध्यक्ष श्रीमती शिल्पा खरगोनकर ने किया तथा आभार का दायित्व श्री मनोहर लाल सायता ने निभाया। कार्यक्रम में नगर के प्रमुख साहित्यकार उपस्थित रहे।