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गुजर रही है जिंदगी अब ऐसे मुकाम से,
अपने भी दूर हो गए जरा से जुखाम से।
पास रहकर भी हम ,कितने दूर हो गए,
इस महामारी से हम सब मजबूर हो गए।
सोचा न स्वपन मे,ऐसा समय भी आयेगा,
अपने पास वाला भी हमसे दूर हो जाएगा।
तरस रहे मिलने के लिए एक दूजे से हम,
पास में वे मेरे खड़े है,गले लगा सके ने हम।
कैसा समय है हवा भी घातक हो गई,
दूरियां भी एक दूजे से ये दवा हो गई।
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम
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