तू ही जननी, तू ही विनाशनी,
तू ही शक्ति स्वरूपा है।
तू ही दुर्गा, तू ही काली,
तू ही माँ जगदम्बा है।
ममता का वात्सल्य भी तू है,
तू ही गौरी माता है।
सतीत्व की मूरत है तू, कभी सावित्री
कभी अनुसूया माता है।
तू ही दिति, तू ही अदिति,
देव-दैत्यों की माता है।
ब्रह्माण्ड की सृजनकर्ता है तू,
तू ही लोकमाता है।
कभी त्याग की मूरत उर्मिला है तू,
कभी परित्याग की सूरत सीता है।
पाप नाशिनी गंगा भी तू,
धैर्यवान धरती भी तू।
प्रकृति का सौंदर्य भी तू है,
प्रलय का प्रचंड वेग भी तू।
तू ही जननी, तू ही विनाशनी,
तू ही शक्ति स्वरूपा है।
तू ही दुर्गा, तू ही काली,
तू ही माँ जगदम्बा है।
#शीतल राय, इंदौर