बोझ ना समझो बुजुर्गो को तुम,
बुजुर्गों से ही है वजूद तुम्हारा।
बुजुर्ग ना होते तो तुम कैसे होते,
नामों निशान ना तुम्हारा होता।
रूखा सूखा खुद ही खा कर,
अच्छा भोजन तुम्हे खिलाया।
कितनी रातें खुद ना सोए,
लोरी गा कर तुम्हे सुलाया।
उंगली पकड़कर चलना सिखाकर,
अच्छे बुरे में भेद बताया।
संस्कार ,सद्गुण देकर हमको,
जिम्मेदार हमको बनाया।
यूं ना भूलो त्याग को उनको,
मत दुत्कारो उनको तुम।
फ़र्ज़ निभाया बुजुर्गों ने अपना,
अब अपना फ़र्ज़ निभा लो तुम।
सम्मान करोगे यदि तुम उनका,
लाख दुआएं पाओगे।
सच कहती हूं सुन लो प्यारे,
धरती पर ही जन्नत पाओगे ।
बुढ़ापा तो सबको आना ही है,
बुढ़ापे से कौन बच पाया है।
कुछ दिन की जवानी है ये प्यारे,
अन्तिम पड़ाव बुढ़ापा है।
बुढ़ापे में यदि खुश रहना चाहो,
बुजुर्गों से ना दूरी बनाओ।
घर के बुजुर्गों की सेवा करके,
अपने जीवन को सुखी बनाओ।
आओ हम सब शपथ उठाएं,
ना बुजुर्गों का अपमान करेंगे।
मरते दम तक तन मन धन से,
बुजुर्गों का सम्मान करेंगे।
रचना – सपना
जनपद औरैया