तो परसों हम बारत लेकर आ रहे हैं। ठीक चार बजे, दुल्हन को तैयार रखियेगा समधन जी।
जी बिल्कुल, आपकी खातिर भी खुब करेंगे, हमने चॉकलेट, आइसक्रीम, यहां तक सुखे मेवे भी रखे हैं….समधन ने इतराते हुए अपनी गर्दन को दांए-बांए करते हुए कहा।
हां… हां….क्यों नहीं , हम जानते हैं आप बङ़े दिल वाली हो, मुझे तो लगता है ये सुंदर सी गाङ़ी भी अपने हमारे दुल्हे राजा के लिए ही खरीद कर रखी है। पीछे खङ़ी चमचमाती सफेद गाङ़ी की ओर इशारा करते हुए वो अर्थपूर्ण अंदाज में वो मुस्कुराया।
जी नहीं, जाइए…. आप जैसे लालची लोगों के यहां नहीं शादी करनी मुझे अपनी गुङिया के कहते हुए रत्ना ने अपनी पीठ फेर ली।
अरे रे…रे… आप तो बुरा मान गई।पहले ने कहा।
वैसे भी ये तो खेल की बात है, सब कुछ झुठ- मुठ का ही तो है।कौनसी सच्ची की गुङिया है, गाङ़ी भी तो खिलौना ही है…. कहते हुए दूसरे ने ठहाका लगाया।
आपके लिए होगा सब कुछ झुठ-मुठ….मेरे लिए तो मेरी गुड़िया सच्ची की राजकुमारी है और मैं इसकी मां। देखना…. एक दिन राजकुमार ब्याह ले जाएगा इसे और वो भी बिना दहेज….कहते हुए रत्ना ने अपनी गुङ़ियों को अपने दुपट्टे में छुपा लिया।
डॉ पूनम गुजरानी
सूरत