खड़ा हूं प्रलय की आंधियों में, लड़ा हूं डट कर, टूटा हूं सौ बार, गिरा हूं,फिर उठा मन विकराल कर चला, रुका नहीं, फिर कभी दोबारा डिगा नहीं।।।
संकट के बादल है घिरे, आंसू खून के हैं वहे, मैं डटा सौ बार, फिर टूटे मन से हूं चला,घनघोर हवाओं के झोंकों में, फिर कभी दोबारा भीगा नहीं।।
अपनों का शिकार हुआ, एक बार नहीं हजारों बार हुआ, टूटने की कगार हुआ, देखा नहीं बिछे अंगारों को, नंगे पांव हूं चला, उनसे फिर कभी दाह शांति दोबारा चाहूंगा नहीं।।
हुआ है भरे समाज का प्रहार तोड़ने को हृदय, मैंने जोड़ा फिर हृदय को बार बार, टूटा नहीं हूं किंचित मन से, जुड़ा रहा मजबूत चट्टान से, फिर दोबारा कभी रेंगा नहीं।।
क्षत्रिय हूं लड़ता रहूंगा जीवन रणभूमि में धर्म युद्ध है जीवन कष्टों की ज्वाला से हूं तपा पहाड़ जैसा हौसला रख लक्ष्य मुझसे छीन कोई फिर दोबारा पाएगा नहीं।।।
ठाकुर तारा सुंदर नगर मंडी हिमाचल प्रदेश