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चुपके – चुपके दुबके से जी ,
आती है नन्हीं गौरैया।
पास तनिक दर्पण के जाकर ,
इठलाती नन्हीं गौरैया ।।1।।
दर्पण में अपने ही जैसे ,
पाकर अचरज में पड़ जाती ।
दर्पण अंदर कौन है ? वह ,
जो है मेरे ही भाँती ।।2।।
फिर गौरैया चुपके से भई ,
उससे चोंच लड़ाती है ।
मेरी आहट पाकर झट से ,
फुर्र से उड़ जाती है ।।3।।
#प्रमोद सोनवानी ‘पुष्प’
रायगढ़ (छ.ग.)
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