तन मन धन सब,
मैने तुझको दे दिया।
दिल मेरा बस्ता हैं,
आज भी हिंदुस्तान में।
कैसे मैं भूल जाँऊ,
अपने हिंदुस्तान को।
पैदा हुआ जहां मैं,
वो हिंदुस्तान है।।
कितनी पावन भूमि,
हिंदुस्तान की हैं।
कण कण में जहां,
बसतें भगवान जो।
कितने देवी देवताओं ने,
जन्म यहां लिया।
वो देश यारो,
अपना हिंदुस्तान हैं।।
माना कि मैं छोड़कर,
आ गया परदेश।
कर्म भूमि मैंने अपनी,
बना ली इसे।
पर दिल धड़कता रहता, इस हिंदुस्तान के लिए।
क्योंकि मैंने जन्म,
जो यहां पर लिया ।।
पीड़ा क्या में सुनाऊं,
लोगों तुम्हें अपनी।
संसाधनों के अभाव में,
जाना पड़ा वहां।
जो करना था काम,
हमको यहां पर।
वो कर रहे हैं हम,
अब वहां पर।
तभी विश्व के पटल पर,
नाम उनका हो रहा।।
कितना शोषण हो रहा,
हिन्दुस्तानीयों का वहां ।
पीड़ा नहीं सुनता कोई,
उन लोगो की वहां।
मेहनत किये जा,
रहा हैं हिंदुस्तानी।
और प्रगति के पथ पर,
बढ़ते जा रहे वो देश।।
बढ़ते जा रहे वो देश।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।