सतयुग से कलयुग

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aasha amit nashine
सतयुग से कलयुग है आया,क्यों दशा न बदली युग बीते ,
नारी  सदियों से  है  अबला , वेदों  के कथन  सभी  रीते।
देवी  तो मात्र  दिखावा है , झुकता जग नहीं ,झुकाता है ,
पल पल पर मौन परीक्षा दे,परिणाम दुखी कर जाता है ।
भावों  का  गहरा सागर ये , पर जीती  सदा अभावों  में,
भोग्या  समझा बस नारी को , हारा  नर ,रण में दाँवों में।
पांचाली  सीता  मीरा  को , छल बल से गया झुकाया है,
छोड़ा सम्मान स्वयं का फिर, नारी  ने  वचन निभाया है।
चंदा  सूरज  औ  धरती  नभ,सारे  देवों  को  जनम दिया,
कर  त्याग समर्पण और नेह , नारी ने घर को स्वर्ग किया।
उजली  छाया  पर  गंदे  पग , मैला  मन  नर का  होता है,
नन्हीं कलियों को मसल रहा ,नित  बीज घिनौने बोता है।
रहती क्यों  विवश जगत आगे ,क्यों दान  सुता  होती आई,
आघात  सहे बिन जन्म लिए , दुनिया करती क्यों निठुराई।
ऐ पुरुष!मेरा बस इक सवाल ,कब तक औरत अन्याय सहे,
कोई  तो  ऐसा  हल भी  दो ,  जग  नारी को अबला न कहे।
है  सहनशीलता धैर्य  बहुत , प्रतिबिम्ब  प्रेम का, पारस मन,
यह प्रेम  प्रदाता सदियों  से , है सदा समर्पित तन  मन धन।
तू  बन  मशाल अब  राख बना , जो  पावों को जकड़ें रस्में ,
चूड़ी के साथ पहन हिम्मत, पथ से न भटक,खा ले कसमें।
नारी  खुद  का  सम्मान  करे  , अरु  मौन  सुने अंतर्मन का,
गूँजा  स्वर  सभी दिशाओं  में ,श्लोक यही इस जीवन  का।
सक्षम   है  तू ,जीवन  दाता  ,रसना  को  डुबा  रौद्र  रस में,
दृढ़ निश्चय कर रखना हिम्मत,हो भरा ओज ही नस-नस में।
#आशा अमित नशीने 
  राजनांदगाँव

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