माँ को दुःख देकर पागल बन्दे तू क्या सुख पाएगा,
माँ ने जितने दुःख सहे तू क्या उतने दुःख सह पाएगा।
क्यूँ भूल गया माँ को,अंगुली पकड़ चलना सिखाया,
गीले में खुद सोई और सूखे में तुझे सुलाया,
वो बचपन न फिर कभी दुबारा आएगा,
माँ को दुःख देकर पागल बन्दे……।
खुद भूखी रहकर भी तुझे खिलाती थी,
खुद जगी रही रात में,लेकिन तुझे सुलाती थी,
उस माँ को तू भूखा कितना तड़पाएगा,
माँ को दुःख देकर पागल बन्दे……।
बच्चा-बच्चा कहकर घूमती थी तेरे पीछे,
आज उसी माँ को तूने ला दिया पैरों के नीचे,
तू कब तक इस माँ को दर-दर भटकाएगा..
माँ को दुःख देकर पागल बन्दे……।
तरस रही है माँ की आँ खें बेटे का दीदार पाने को,
बेटा तो पत्नी में लीन हो भूल गया जमाने को,
उस बूढ़ी माँ की आँखों से तू कितने अश्क बहाएगा..
माँ को दुःख देकर पागल बन्दे…….।
सोच रहा है पागल बन्दे जिंदगी के बारे में,
जिसने तुझे जिंदगी दी,सोच जरा उस के बारे में
माँ की सेवा कर ले,सब यहीं रह जाएगा..
जो करे माँ की सेवा,वो सात जन्म सुख पाएगा।।
#दिनेश कुमार प्रजापत
परिचय : दिनेश कुमार प्रजापत, दौसा जिले(राजस्थान)के सिकन्दरा में रहते हैं।१९९५ में आपका जन्म हुआ है और बीएससी की शिक्षा प्राप्त की है।अध्यापक का कार्य करते हुए समाज में मंच संचालन भी करते हैं।कविताएं रचना,हास्य लिखना और समाजसेवा करने में आपकी विशेष रुचि है। आप कई सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं।