शिक्षा में करें क्रांति

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vaidik
आर्थिक आधार पर शिक्षा-संस्थाओं में आरक्षण स्वागत योग्य है। वह दस प्रतिशत क्यों, कम से कम 60 प्रतिशत होना चाहिए और उसका आधार जाति या कबीला नहीं होना चाहिए। जो भी गरीब हो, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या भाषा का हो, यदि वह गरीब का बेटा है तो उसे स्कूल और काॅलेजों में प्रवेश अवश्य मिलना चाहिए। किसी भी अनुसूचित जाति या जनजाति या पिछड़े वर्ग का कोई बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहना चाहिए। वह यदि मलाईदार परत का नहीं है तो भी उसे उत्तम शिक्षा पाने से कौन रोक सकता है ? कम से कम 10 वीं कक्षा तक के छात्रों के दिन के भोजन, स्कूल की पोषाख और जिन्हें जरुरत हो, उन्हें छात्रावास की सुविधाएं मुफ्त दी जाएं तो दस वर्षों में भारत का नक्शा ही बदल जाएगा। ये सब सुविधाएं देने के पहले सरकार को गरीब की अपनी परिभाषा को ठीक करना पड़ेगा। सवर्णों के वोट पटाने और उन्हें बेवकूफ बनाने के लिए 8 लाख रु. सालाना की जो सीमा रखी गई है, उसे सिकोड़कर सच्चाई के निकट लाना होगा। उसे आधा या एक-तिहाई करना होगा।
यदि यह किया गया तो सबसे पहले यह होगा कि जो करोड़ों बच्चे अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ भागते हैं, वे नहीं भागेंगे। मैट्रिक तक पहुंचते-पहुंचते वे बहुत से हुनर सीख जाएंगे। यदि उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी तो भी वे इतने हुनरमंद बन जाएंगे कि उन्हें अपने रोजगार के लिए किसी प्रधान सेवक के हवाई वायदों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। यह तभी होगा जबकि मैकाले की शिक्षा पद्धति को तिलांजली दी जाए। बच्चों को रट्टू तोता बनाने की बजाय हुनरमंद बनाया जाए। उन्हें उनकी मातृभाषा में ही सारे विषय पढ़ाए जाएं। उन पर अंग्रेजी या कोई भी अन्य विदेशी भाषा थोपी न जाए। 10 वीं कक्षा तक किसी भी विदेशी भाषा की अनिवार्यता पर प्रतिबंध होना चाहिए। जो स्वेच्छा से सीखना चाहें, वे जरुर सीखें। देश में एक भी बच्चा अशिक्षित नहीं रहना चाहिए।
देश में चल रही समस्त निजी शिक्षा-संस्थाओं के पाठ्यक्रमों और फीस पर नियंत्रण रखने के लिए एक उत्तम शिक्षा-आयोग बनाया जाए। आज देश के निजी अस्पताल और स्कूल-कालेज लूट-पाट के सबसे बड़े अड्डे बन गए हैं। उनका लक्ष्य एक सबल, संपन्न और समतामूलक भारत का निर्माण करना नहीं है बल्कि सिर्फ पैसा बनाना है।
यदि भारत की शिक्षा-संस्थाओं में शरीर और चरित्र, दोनों की सबलता पर भी जोर दिया जाए तो भारत को अगले एक दशक में हम दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्रों की पंक्ति में खड़ा कर सकते हैं। शिक्षा में क्रांति के आधार पर ही अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र बना है। भारत की शिक्षा में विज्ञान और तकनीक के शोध-कार्यों पर जोर दिया जाए और वह शोध स्वभाषाओं में किया जाए तो भारत के प्रतिभाशाली युवक अपने देश को बहुत आगे ले जा सकते हैं।
#डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।