माँ का बँटवारा 

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aashutosh kumar
बात उन दिनों की है जब मैं स्कूल में पढ़ता था।मेरा एक दोस्त जो मेरे साथ ही पढता था। उसे साथ लेने मै अक्सर उसके घर जाया करता था। चूँकि स्कूल दूर थी,और रास्ते सूनसान होते थे तो हम दोनो एक दूसरे को साथ लेकर ही जाते थे । एक दिन की बात है मैं सुबह के तरीबन 9•15 बजे उसके घर गया।वो
भी तैयारी कर रहा था।इतने में बगल के एक परिवार में हल्ला होने लगा हमदोनो दौडकर गये मामला कुछ समझ में नही आने पर मैने किसी परिचित से पूछा!
ये हल्ला क्यों हो रहा है खेलावन भाय?
उसने कहा-बाबू यह झगडा माँ के बँटबारे का है?
मैने कहा यह कैसे हो सकता है?
इस युग में सब होता है बाबू! देख लो उस बुढिया के तीन बेटे है तीन बहुएँ और पोता पोती नाती सभी है लेकिन आज बेटों को देखो कैसे चिल्ला रहा है कि मै माँ को इतना दिन रखा तूने नहीं रखा भला माँ का भी बँटवारा होता है इन्हीं झगड़ो की वजह से माँ किसी के पास रहना नही चाहती।दरअसल साल के बारह महीने होते है तीनो पुत्र को चार चार महीने का पार बंघा है माँ को रखने का लेकिन उसमें भी आना कानी भला कैसा समय आ गया लोग माँ को भी बाँट ने लगे है पर माँ क्या करे?अपनी ममता का भला कैसे बाँटे ? जब उसने इनको पाला पोशा होगा तो सभी को एक जैसा ही समझकर अपने आँचल से प्यार और ममता की छांव में बड़ा किया होगा पर आज देखो बाबू कैसे ये लोग इसकी ममता का भी बँटवारा करके जीते जी मार रहे हैं। सचमुच वो मंजर देखकर किसी का भी दिल पसीज जाता मैं खेलावन की बातो में इतना खो गया कि स्कूल भी नही जा सका और घर आकर चुपचाप आज की घटनाओ पर सोच रहा था कि आखिर ऐसा क्यू होता है क्या समाज का कोई फर्ज ऐसी घटनाओं या अपेक्षाओं के शिकार लोगों के लिए कार्य क्यों नही करते ? अगर लडके/लडकी माँ की देखभाल या बँटवारा करती है तो उस स्थिति में माँ क्या करेगी ये सोचते हुए मै बेचैन सा हो गया।
उस एक घटना का जिक्र आज की परिदृश्य में और बढ गया है।  दरअसल स्वार्थ इस कदर हावी है लोगों पर कि वह सोचने समझने और नैतिक पतन की ओर जाने पर भी अफसोस महसूस नहीं करता और विलासिता में डूब जाता है। एकल मानसिकता की प्रवृति की ओर बढता समाज आज बुजुर्गो को बाँटने लगे है और अपने फर्ज से भटक रहे है।भाईयो के झगडे तो आम बात है लेकिन माँ या बाप का बँटवारा अनैतिकता की पराकाष्टा।समाज मे बढ़ रहे बुजुर्गो की उपेक्षाओं, प्रताड़नाओं और बढती बृद्धाआश्रम तो चीख-चीख कर कुव्यवस्थाओं और अनैतिकताओं की कहानी को उजागर करने को काफी हैं।आखिर कब-तक बुजुर्ग अपनों से ही उपेक्षित होते रहेंगे।उन बच्चों के लिए सोचना ही होगा जो कल के भविष्य है अगर ऐसे ही बृद्धाआश्रम बढते रहे तो हमारी संस्कृति का उपदेश देने वाला बृद्धाआश्रम के चार दिवारी में कैद होकर रह जाएगा और बच्चो को संस्कृति की समझ ही नहीं होगी वो सामाजिक परम्पराओं से परिचित और वंचित होते रहेंगे ऐसे में एक बेहतर समाज की परिकल्पना करना कठिन है।

“आशुतोष”

नाम।                   –  आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम –  आशुतोष
जन्मतिथि             –  30/101973
वर्तमान पता          – 113/77बी  
                              शास्त्रीनगर 
                              पटना  23 बिहार                  
कार्यक्षेत्र               –  जाॅब
शिक्षा                   –  ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन                 – नगण्य
सम्मान।                – नगण्य
अन्य उलब्धि          – कभ्प्यूटर आपरेटर
                                टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य   – सामाजिक जागृति

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।