“न जाने कहाँ खो गए”

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sadhana chirolya
“वो पीपल की छाँव,
वो रस्सी के झूले।
वो गुड्डे की शादी,
वो मामुलिया के गाने।।
न जाने कहाँ खो गये।
वो रेत के घर,
वो सीप और पत्थर।
वो मंदिर की होली,
वो टेशू के रंग।
न जाने कहाँ खो गये।।
वो कागज की नाव,
वो वर्षा की बूंदें।
वो कागज के पैसे,
वो मीना बाजार,
न जाने कहाँ खो गये।।।
वो चंपा,चमेली,
वो जूही और बेला।
वो रात की रानी,
न जाने कहाँ खो गये।।।।
वो आँख-मिचौली,
वो छुपम-छुपाई।
वो गिल्ली,
वो डंडा।
न जाने कहाँ खो गये।।।।
वो बंदर,मदारी,
वो रंगीन कठपुतली।
वो कुश्ती,
वो दंगल।
न जाने कहाँ खो गये।।।
वो शादी की गारी,
वो होली की फागें।
वो आल्हा,
वो ऊदल।
न जाने कहाँ खो गये”

#श्रीमती साधना छिरोल्या

 दमोह (म.प्र.)

सम्मान- भाषण,नाटक,वाद विवाद,श्लोक,सुलेख,लोकगीत आदि विभिन्न प्रतियोगिताओं में पुरुस्कार।

गहोई समाज एवं हितकारिणी स्कूल जबलपुर द्वारा हिंदी काव्य लेखन के लिये सम्मानित।
 प्रकाशन-गहोई सूर्य अख़बार जबलपुर
गहोई संस्कार पत्रिका जबलपुर(म.प्र.)
गहोई बंधु 
ग्वालियर(म.प्र.)
लोकजंग
लगातार प्रकाशित हो रहीं हैं।

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