घर से निकल कर मुख्य सड़क पर आया ही था कि गाड़ी को जोर के ब्रेक के साथ रोकना पड़ा।सामने एक महिला जल्दी से सड़क पार करने की जल्दबाजी में गाड़ी के सामने आ गई।
एक तो पहले ही देर हो गई थी हॉस्पिटल के लिए दूसरा इसे मेरी ही गाड़ी मिली ये सोचकर उतरने ही वाला था कि उसके चेहरे पर निगाह पड़ते ही गुस्सा ना जाने कहाँ गायब हो गया ठीक वैसे ही जब वो वादा तो करती पर आती नही दीवानों की तरह उसका इन्तज़ार करता और जब अगले दिन गुस्से में भरा बैठा होता तो ना जाने उसके सामने आते ही कहाँ चला जाता था सारा क्रोध …आज भी नही पता।जब तक कुछ समझ मे आता … वो गायब हो गई ठीक उसी समय के गुस्से की तरह।
हॉस्पिटल पहुँचा तो पता चला की जिस एमरजेंसी केस के लिए जल्दी आया अब वो नही रहा ।मन ना जाने कैसा कसैला सा हो गया।डॉ हूँ रोज देखता हूँ लोगों का जाना लेकिन आज ना जाने क्यों कुछ अजीब लग रहा था।फिर भी सब जरूरी काम निपटाए और कॉफी का मग हाथ मे लिया ही था की रिसेप्शन से फ़ोन आया कि एक महिला मिलना चाहती है भेजिए कहा और मेल चेक करने लगा ।
May i come in .. एक पहचानी सी आवाज सुनाई दी तो लगा हज़ार मोगरे महक उठे हो एक साथ ।
यस..कहते हुए नज़रें मिली तो वक़्त थम गया ना मैं उठ सका ना वो एक कदम ही आगे बढ़ा सकी।
जाने कब तक वक़्त और हम थमे ही रहते अगर फ़ोन ना बजता ।फ़ोन पर श्रेया थी उससे बात करते करते मेघा को बैठने का इशारा किया पर वो भी ना जाने कैसी नींद में हो जैसे बैठ ही ना पाई खड़ी रही जैसे कोई बुत हो मानो।
जल्दी से बात खत्म कर कहा ..मेघा बैठो।
हाँ …उसने हड़बड़ाते हुए कहा ..लगा जैसे एक तूफान गुजर गाया हो उसके ऊपर से बस अभी अभी।
आपसे एक रिक्वेस्ट करने आई थी की कल रात मैं अपने यहां जिसे लेकर आई वो तो अब रहे नही ना इलाज करा पाई मगर मेरे ऊपर आपका अहसान होगा अगर आ…
ओह्ह तो वो मेघा के….
कहाँ से डोर कहा तक बंधी होती है कोई नही जानता…मैंने कहा
मेघा मेरी तरफ देखो …
उसने नज़रे उठाई देखा और सब अनकहा मैंने सुन लिया ..ठीक उसी तरह जैसे तब सुन लिया करता था।
उसके हाथ से फ़ाइल लेकर नोट डाला ‘all dues clear’ तुम्हे कुछ नही देना है बस अपने को सम्हालो और हाँ हॉस्पिटल की एम्बुलेंस छोड़ देगी तुम्हें और…
इतना कहकर फ़ोन पर सब व्यवस्था कर दी उसके जाने की जैसे उसे कुछ तकलीफ होना मानो खुद को तकलीफ होना हो।
आँखों से आँसू निकला ही था की उसने सम्हाल लिया ….जानता था बहुत मजबूर होकर आई होगी हमेशा से ही कोई दुख ना बताने की आदत रही उसकी।
ठीक वैसे ही जैसे मेरी समझ जाने की उसकी सब तकलीफ।
एक कॉफी और सैंडविच मंगवाये उसके लिए जानता था कि कई दिनों से भूखी भी है और अकेली भी।
एक कप कॉफी नज़रे झुकाए हुए ही खत्म कर दी उसने जो एक घूंट के साथ जाने कितनी ही बातें कर जाती थी।
मन भर गया मेरा अंदर तक लगा उसे गले लगा लूं और सारे दुख सोख लूं उसके।
अचानक उसने कहा ..
जिस दिन अलग हुई तुमसे उसी दिन मर गई थी ।ये मैंने तभी जान लिया था जब उस दिन घर से जाते वक्त तुम्हारी पीठ देखती रही नज़रों से ओझल ना हो जाने तक। जान गई थी कि अब दुबारा ज़िंदगी को कभी नही देख पाउंगी।
पापा नही चाहते थे की उन्होंने जिस कारण सारा जीवन अकेले बिताया वही मेरा भी कारण बने अकेले होने का …..थोड़ा रुककर फिर बोली मेघा …
मेरी माँ की एक किडनी थी ये कारण ना रहा हो उनके जाने का लेकिन पापा ने इसे ही कारण माना था। फिर जब तुमने कहा कि तुम अपनी एक किडनी अपने भाई को पहले ही दे चुके हो तब पापा इस बात को स्वीकार नही कर पाए।तुम खुद डॉक्टर बनने वाले हो और तुम्हारी सारी दलीलें सारे फैक्ट्स भी पापा को ना बदल सके ना उनकी धारणा को ।
लेकिन विडम्बना देखो यही वजह बनी आज मेरे अकेलेपन की भी वही किडनी जो दो होते हुए भी ना बचा सकी मेरा अकेलापन।
देखो ना पूरी दो किडनी थी सही सलामत सिर्फ डेढ़ साल पहले तक ।
आज नही है ना पापा ना वो जिसे सौपा गया था मुझे हमेशा मेरे साथ रहने की हिदायत के साथ।
आज तुम सही सलामत हो और वो भाई भी जिनके पास एक ही है किडनी जिसके डर की वजह बनी मेरी मौत का। कारण
कहकर मेघा ने सर टिका लिया मेज़ पर ….हताश है बिखरी हुई है ये जानकर की कह लेना ही एकमात्र इलाज है इस वक़्त उसका मैं चुपचाप सुनता रहा।
उसने धीरे से सर उठाकर फिर कहा … देखो ना जो मर गई थी उसकी सांसे चल रही अब तक और जो दोनों किडनियों के साथ आया उसकी सांस की डोर टूट गई।
सुनो ….आज तुम बहुत बड़े dr हो एक काम करोगे अब जब भी किसी को किडनी की जरूरत हो मुझे बुलाना मैं अपनी एक किडनी दूंगी ।तुम्हारी तरह एक किडनी के साथ ही रहना चाहती हूं बिल्कुल तुम्हारी तरह और लिखूंगी की मरने पर जिस भी अंग की उपयोगिता रह जाये सब लिए और जरूरतमंद को दिए जाएं।
अपनी देह भी दान करती हूं पड़ने वाले बच्चों के लिए इसके साक्षी तुम रहोगे …रहोगे ना?
तुम्हारा किया व्यर्थ ना गया अब तुम देखना मैं भी व्यर्थता की मौत ना मरूँ।
और तुमसे माफी बिल्कुल नही मांगूंगी क्योंकि तुम यकीनन माफ कर ही दोगे लेकिन इसी अपराध के रिश्ते से ही ….सही बनी रहना चाहती हूँ तुम्हारी ज़िंदगी मे हमेशा।
किसी और तरह से तो नही इसी तरह से ही सही।जाहिर है शब्दों के साथ आँखें भी गीली ही थी बोलने वाले की भी और सुनने वाले की भी।
अब चलती हूँ कहकर उसने आँख भर देखा मेरी तरफ जैसे ज़िंदगी भर के लिए एक बार ही बार मे आंखों में भर लेना चाहती हो और मुड़कर चली गई ।
हम किसी किसी से कभी नही छूट सकते कुछ लोग ना होकर भी होते है जिंदगी में हमेशा … जैसे मेघा है और रहेगी ये बात केवल मैं ही नही श्रेया भी जानती है जिसे मैंने शादी के पहले ही सब बता दिया था।
मैंने भी जाती हुई रात के साथ सर टिका लिया पीछे कुर्सी पर बहुत रोका पर दो गरम आँसू लुढ़क ही पड़े गालों पर।
#रश्मि मालवीय
परिचय: रश्मि मालवीय
इंदौर(मध्यप्रदेश)
समाज शास्त्र में परास्नातक
लाइब्रेरी साइंस में स्नातक
शिक्षा में स्नातक
पिछले 13 वर्षों से पुस्कालयध्यक्ष के पद पर कार्यरत व हिंदी साहित्य से लगाव है |
कई पत्रिकाओं एवं वेब पत्रिकाओं में कविता प्रकाशित होती है|