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बारिशों की बूँदें बरसने लगी,
तुमसे मिलने को फिर मैं तरसने लगी,
इन हवाओं ने छेड़ा, मुझे आज फिर,
तेरी खुशबु से मैं फिर महकने लगी
प्यार में ही तुम्हारे गुमसुम हूँ मैं,
तेरी चाहत में फिर मैं सवरने लगी.
रंग मेरा निखरने लगा और भी,
तेरे साय में जबसे मैं चलने लगी
इश्क़ तेरा तो नेहा की पहचान है
तेरी खातिर हदों से गुजरने लगी.
नाम – नेहा चाचरा बहल
शिक्षा – ऐन टी टी, बी कॉम, एम कॉम, एम ए (हिंदी),बी एड, प्रभाकर(गायन)
सी सी सी, डी टी पी एवं सी आई ए इन कंप्यूटर एप्लिकेशन
क्षेत्र – सहायक प्रबंधक ( मानव कल्याण विकासवादी संस्थान )
पता – झांसी उत्तर प्रदेश
विधा – गीत, ग़ज़ल, भजन, देशभक्ति, कविता, पंजाबी टप्पे ।
सम्मान – विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि प्राप्त (द्वारा प्रतापगढ़ यूनिवर्सिटी) ।
प्रकाशन – बुंदेलखंड की कवियत्रियाँ , दुल्हन , अभियान टुडे , दैनिक जागरण, जन सेवा मेल , अमर उजाला आदि समाचार पत्रों में भी रचनाओ को स्थान प्राप्त हुआ है।
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