वेष दिगम्बर धारी मुनिवर करुणा अब जगाएँगे
पार करो खेवैया नहीं तो हम भव में ठहर जाएँगे
भक्ति भाव से आपको पुकारें हे! विशुद्ध महासंत
कृपा प्रकटाओ अपनी नहीं तो हम किधर जाएँगे
आपने ठहराई आस अब लेता हूँ दोनों हाथ पसार
नाम आपका लेकर बाधाओं से हम पार हो जाएँगे
कर्म किये भवों से खोटे पास आपके अब आये हैं
ले लो शरण में हमें भाग्य हमारे भी सँवर जाएँगे
विषयों का विष पीकर विषधर से क्या कम हैं हम
दे दो आशीष हमें इस गरल से हम मुक्त हो जाएँगे
यूँ सब करके देखा फिर चैन कहीं न मुझको आया
आपने ठुकराया प्रभु तो अब हम और कहा जाएँगे
लड़ता रहा जग से, आत्म से आयी युद्ध की बारी है
थामलो हाथ मेरा गुरुवर हम भी भव से तर जाएँगे
अंत अब नमन करूँ श्री आचार्य परमेष्टि मंगलकार
चरण रज माथे धरूँ ‘राहत’ कर्म कंटक मिट जाएँगे
#डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’