`आप खुद देखिए सर जी,स्कूल की फीस,बस फीस,लंच फीस,किताबें,ड्रेस,जूते,ट्यूशन फीस,और भी न जाने क्या क्या तो लगता है बच्चों को पढ़ने में!! उस पर पता नहीं,किस मीठे में आपने प्रायवेट स्कूलों को डोनेशन(मन का अनुदान) लेने की छूट दे दी !!` वे कुछ देर चिंतन-योग के बाद बोले-`राष्ट्रहित के लिए […]
व्यंग्य
व्यंग्य
सरकारी सम्पदा से प्राप्त आय से बढ़े हुए पेट को तोंद कहते हैंl तोंद विकास का प्रतीक है। यह प्रतीक उतना ही पुराना है,जितनी पुरानी गरीबी। राज्य का विकास जानने के लिए तोंदवालों की गिनती होनी चाहिएlजितने तोंद वाले,उतना उस राज्य का विकासl विकास तोंद का प्रतीक और तोंद विकास का…विकास होगा तो भ्रष्टाचार होगा,भ्रष्टाचार होगा तो तोंद निकलेगी,यानी तोंदवाले को भ्रष्ट कहा जा सकता है,लेकिन जरूरी नहीं कि भ्रष्ट तोंदवाला हो। मोटा होना और तोंद वाला होना दोनों में फर्क हैl मोटा जन्मजात होता है,तोंदवाला ज्यादा खा-खाकर तोंदवाले की श्रेणी में आता है। बिना तोंदवाले भी भ्रष्ट हो सकते हैं। तोंद हो तो काशी और मथुरा के पंडो जैसी।भरपेट खाना खाने के बाद चार पूड़ी,एक गिलास रायता और एक कटोरा खीर तो चल जाएगी। तोंद पुलिसवालों की मशहूर होती है। पुलिस का पटटा तोंद में इस तरह समा जाता है-जैसे चावल में सफेद कंकड़,धनिए में लीद,फाइल में भ्रष्टाचार,सीमेंट में रेत और न जाने क्या-क्या? अकसर तोंद देखते ही मन के भाव बिगड़ जाते हैं। तोंदवाले से पत्नी परेशान होती है और होते हैं- बस वाले,रिक्शे वाले और रिश्तेवाले। तोंद होना सिद्ध करता है कि,आप आलस के मारे हैं या फिर रिश्वत के…,दोनों ही स्थितियां तोंद बढ़ाने में मददगार हैं। तोंद साम्प्रदायिक सदभाव काप्रतीक है।तोंद का विकास सम्प्रदायवाद से होता है। जोसभी सम्प्रदाय का समान रूप से शोषण करता है,उस शोषण से तोंद का विकास होता है। तोंद गरीब आदमी कीनहीं होतीहै,किसान कीभी नहीं होती,सेना के जवानों की भी नहीं होती,तोंद नेताओं कीहोती है,सेठों की होती है,महिलाओं का पेट होताहै,तोंद नहीं होतीहैlपहाड़ों पर तोंद वाले नहीं दिखाई देते,गांवों में भी तोंद नहीं दिखाई देती,शहरों में नगर पालिका कार्यालय,रेलवे काउंटर,किराने की दुकान,कपड़े की दुकान पर तोंद देखने को आसानी से मिल जाती है। तोंद राष्ट्र विकास की मुख्यधारा है। राष्ट्रीय पशु,राष्ट्रीय पक्षी,राष्ट्रीय खेल की तरह हीतोंद को भी राष्ट्रीय विकास का प्रतीक बना देना चाहिए। वैसे अब तोंद पदोन्नतिप्रतीक बनाए जाने पर जोर दिया जा रहा है। तोंद होगी तो पदोन्नति नहीं होगी,तोंद नहीं होगी तो पदोन्नति होगी। तोंद,निकम्मेपन के प्रतीक के रूप में उभरकर सामने आ रही है। कुछ लोगों की तोंद देखकर लगता है,जैसे उन्हें खाने की जरूरत नहीं है तो,किसान का पेट देखकर लगता है,उसका खाना सब तोंदवाले खागएlबचपन में तोंद निकलना कुपोषण का लक्षण और अधेड़ अवस्था में तोंद का निकलना अनियमितता-असंतुलन-पेटू होने का प्रतीक है।तोंद पर विचार-विमर्श होना चाहिए। आदमी की कितनी तोंद होनी चाहिए,तोंद का मानदण्ड होना चाहिए। `जीएसटी` की तरह हीमानकीकरण होना चाहिए।४५इंची तोंद पर १२ प्रतिशत जीएसटी,५९ इंची पर १८ प्रतिशत और जिनके पिचके पेट हैं उन्हें `करमुक्त` रखना चाहिए।एक सर्वे होना चाहिए,जिसमें तोंद वालोंको कितने प्रतिशत महिलाएं पसंद करती है,कितने प्रतिशत लोग तोंद को अच्छा मानते हैं। तोंद बढ़ाने के प्रयासों पर कार्यशाला होना चाहिए-देश के लिए तोंदवालों का महत्व। यह भी तय होना चाहिए कि,मंत्री की कितनी तोंद होनी चाहिए,संतरी की कितनी,राज्यमंत्री की कितनी और प्रधानमंत्री को कितनी तोंदसे काम चलाना चाहिए। अधिकारी और बाबू को `तोंदकर` के दायरे में लाना चाहिए। सबसे ज्यादा तोंद कर सेठों से वसूलना चाहिए। […]
मानसून अकेला नहीं आता,मानसून दल-बल के साथ आता है।अकेले आने में उसे डर लगता है। हमारे यहां मानसून आता है तोलगता है, नेताओं का झुण्ड आ रहा है कभी लगता है अधिकारियोंका दरबार आ रहा है। मानसून बारात की तरह होता है,बारात केआते ही मोहल्ला गूंज उठता है,कुत्ते चिल्लाने लगते हैं,कुछ दुबकजाते हैं,महिलाएं बाहर निकल आती है दूल्हे को देखने। मानसून केआते ही महिलाएं घर से बाहर निकलती हैं,शरीर पर उभरी घमोरियोंको दूर करने के लिए मानसून की बारिश में नहाती हैं। बारात केमनचले बारात की लड़कियों को घूरते हैं,मानसून की बारिश में नहातेसमय मोहल्ले के शरीफजादे कभी तिरछी नजर से,तो कभी सीधीनजर से निहारते हैंll।उन्हें लोग घूरना भी मान लेते हैं। ये बारिश काधन्यवाद करते हैं। बारिश में नालियां खुशी से उफान पर आ जाती हैं। उनमें फंसा कचरागुलाब की तरह खिल जाता है। उससे उठती दुर्गंध से लोगों की नाकपकोड़े समान हो जाती है। जेब का रुमाल नाक पर आ जाता है। सड़कका कचरा विपक्ष की एकता की तरह एकसाथ बहने लगता है। सत्तापक्ष सफाई में जुट जाता है। कचरा सड़क पर भ्रष्टाचार की तरह फैलजाता है,उठाते-उठाते थक जाते हैं,कचरा समाप्त नहीं होता है। मानसून का इंतजार हो रहा है। बारिश शुरू हो चुकी है। मौसम विभागका कहना है-यह बारिश मानसून की नहीं है,आज तक समझ में नहींआया कि,मानसून की बारिश और मानसून से एक दिन पहले कीबारिश में क्या अंतर है। मौसम विभाग किस बारिश को मानसूनीबारिश मानता है,समझ में नहीं आता है। मानसून खुश होने का मौसम होता है। किसान खुश,नेता खुश,बाढ़़आएगी,अधिकारी-बाबू खुश हैं। मानसून में सड़ी प्याज व्यापारी बेचदेते हैं,समोसे की बिक्री बढ़ जाती है,सड़े आलू के खाद्य पदार्थ बाजारमें, ब्रेड पकोड़ा की टीआरपी बढ़ जाती है,छतरी के भाव आसमान छूनेलगते हैं। छतरियां प्रेमियों को भाती हैं,तिरछी नजर से छतरी बारिशऔर बाप की आंख से बचाती है। चखना की खोज में बेवड़ा लोगनिकल पड़ते हैं,प्याज के पकोड़े चखने का काम कर जाते हैं। पेन्ट हॉफ पेन्ट में बदल जाती है। महिलाएं पाजामा पहनने लगतीहैं,ताकि बारिश से बचने के लिए उसे घुटनों तक किया जा सके। मैकेनिकों की पौ-बारह हो जाती है। चार के आठ वसूलने का मानसूनआता है। नेता खुश हो जाते हैं,आसमान से बाढ़ का नजारा औरजमीन पर नोटों का खजाना। राहत सिर्फ राहत कुछ के लिए,कुछकौन ??????? मानसून का इंतजार करते हैं-चिकित्सक,अस्पताल,दवाईवाले,अधिकारी और बाबू। मानसून डेंगू,बुखार,डेंगी,चिकनगुनिया,बर्डफ्लू आदि के साथ आता है। इन दिनों सभी की जेब मानसून कीबारिश से आई बीमारियों से प्राप्त पैसे से भारी हो जाती हैं। बाढ़ राहतकोष, स्वयंसेवी संस्थाएं लूट का इंतजाम,कार्यकर्ता जमा हो योजनाबनाने लगते हैं,झोपड़ पटटी में फैली सुन्दरता को निहारने का मौकामनचले तलाशने लगते हैं। बारिश हो चुकी है,मौसम विभाग की घोषणा का इंतजार है,मानसूनआ गया है,बारिश नहीं आई है। […]
घर के बाहर खड़ी कार आपका सम्मान बढ़ाती है। पुरानी होया नई,यह सम्मान का प्रतीक है। सरकारी कार हो तोसम्मान और बढ़ जाता है। सरकार में रहना और कार में बैठनासुकून की बात है। लोग बाहर से झांक कर देखते हैं,कौन कारमें है,कौन सरकार में है। कार और सरकार में बैठने के लिएजरूरी है आपके कपड़े अच्छे हों,उसमें बैठने का तमीज हो,येनहीं कि,अंदर बैठकर बाहर की तरफ थूक दिया। सरकारी खड़ी कार भी चलती है और सरकार भी चलती है। खड़ी कार और खड़ी सरकार दोनों ही निकम्मेपन का प्रतीकहै। सरकार रविवार को नहीं चलती,लेकिन खड़ी सरकारी काररविवार को भी चलती है। रविवार को चलने वाली सरकारीकार में जरूरी नहीं कि,सरकारी साहब ही हों। अक्सर,आप जब रविवार को बाहर निकलते हैं तो देखते हैंसरकार की कार सड़क पर है,पर उसमें बैठे होते हैं–दादा,दादी,बच्चे और उनकी सुन्दर (जैसी भी हो) मां। सरकारी कार केशीशे सफेद होते हैं,उसमें पर्दे लगे होते हैं,लेकिन वे हटा दिएजाते हैं। सरकार की यही पारदर्शिता अच्छी लगती है। वैसेसरकारी कार शाम को छह के बाद माल की पार्किंग,सब्जीमण्डी के किनारे, किसी बड़े शो–रूम के सामने इठलाई–सी खड़ीहोती है। उसमें कभी `मेम साहब` तो कभी उनके बच्चे फटीजीन्स पहने निकलते दिखाई देते हैं। हाथों में मोबाइल,हाथ मेंसोने का ब्रेसलेट,गले में सोने की चेन,लेकिन गाड़ी सरकारकी,पेट्रोल सरकार का,आदमी सरकार का…। जब पतिसरकारी है,तो गाड़ी भी सरकार की ही होनी चाहिए। रविवार को सरकार बंद और सरकारी गाड़ी काम पर…। साहबछुटटी पर,चालक नौकरी पर..। जब चालक अपने परिवार कोसरकारी गाड़ी में घुमाता है तो समाजवाद नजर आता है।अच्छा लगता है,सब मिलकर सरकारी सम्पत्ति को अपनीसम्पत्ति मानकर उपयोग कर रहे हैं। आओ सरकार कीसम्पत्ति को अपनी मानें,उसे जलाएं,तोड़ें या बरबादकरें,क्योंकि यह `सम्पत्ति आपकी अपनी`है। सरकारी गाड़ी चालक चलाता है,साहब नहीं। चालक क्याआदमी नहीं होता,उसके बाल–बच्चे नहीं होते,उसका समाजनहीं होता,उसके बच्चों का मन नहीं होता,उसकी पत्नी कीइच्छाएं नहीं होती। जब साहब की बीबी को वह कार्यालयीन समय के बाद घुमा सकता है,उनके काम कार्यालयीन समयके बाद कर सकता है,तो उसे भी अधिकार है कि वह अपनीबूढ़ी मां को `इंडिया गेट` सरकारी गाड़ी में घुमा सके। साहब केदादाजी की मैयत में साहब के पूरे परिवार को शहर से कोसोंदूर ले जा सकता है,तो क्या साहब को पत्थर दिल समझ लियाहै। साहब पत्थर दिल नहीं होते। वे भी जानते हैं,सरकार काऔर सरकारी गाड़ी का उपयोग कैसे करना चाहिए। साहबजानते हैं,कार और सरकार भ्रष्टाचार का प्रतीक है और इसमेंसबका बराबर का हिस्सा है। उसमें साहब से लेकर चपरासीतक का अनुपात है। सरकार चलाने के लिए बहुमत के साथ–साथ अनुपात भी होना चाहिए। कार साहब के घर के सामने या चालक के घर के सामने,दोनोंका सम्मान उसी अनुपात में होता है,जितना सरकार चलाने केलिए हिस्सा होता है। सब चाहते हैं,घर के सामने खड़ी कार। कार सरकारी हो,अपनीहो या घर पर आए रिश्तेदार की..कार के आते ही दरवाजे खुलजाते हैं,उत्सुकता बढ़ जाती है- `घर आया मेरा परदेसी,प्यास बुझे मेरी अंखियों की…।` #सुनील जैन राही परिचय : सुनील […]