उलझा मन, घायल तन आंखों में रुका, खारा जल रुक जाऊं… या बढ़ जाऊं! तुम्हें देखूं! या अनदेखा कर दूं, देखो वो देखो चारों ओर यही शोर था, सुनो सुनो… व्याकुलता लिए असमर्थ क्रंदन था, भूमि की गोद मौन शरीर था। भावनाएं,संवेदनाएं लिए थी खालीपन, शायद अंर्तमन को प्रश्नों ने […]
काव्यभाषा
काव्यभाषा
तुम्हें अच्छी नहीं लगती, पक्षियों की स्वच्छंद उड़ान क्योंकि-तुम, उड़ ही नहीं सकते। तुम्हें भाता नहीं है, पक्षियों का निडर होकर चहकना, क्योंकि-तुम जहाँ गंभीर हो, वहाँ महज़ दिखावा है। तुम्हें पसंद नहीं आता, पक्षियों का कतारवद्ध अनुशासन, क्योंकि-तुम जहाँ पर सख्त़ हो,वहाँ साम्राज्य है तुम्हारे ही अड़ियल स्वभाव का। […]
