सुहानी यादों को मैं आज ताजा कर रहा हूँ। बैठकर बाग में उस चाँद को पहले की तरह ही आज। अपनी आँखो से तुम्हें देखकर उसी दृश्य की परिकल्पना कर रहा हूँ।। ओढ़कर प्यार की चुनरिया, चांदनी रात में निकलती हो। तो देखकर चांद भी थोड़ा, मुस्कराता और शर्माता है। […]
काव्यभाषा
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