मंच लूट लै गये जुगाड़ू अब का कल्लँय, हम रय जेमै सदा पिछाड़ू अब का कल्लँय! ००० साफ़-स्वच्छ जग्घा पे अकड़ू आन विराजे, हमरे हिस्से में बस झाड़ू अब का कल्लँय! ००० इतै-उतै की धरैं समैटैं हैं जो कविता, बने मंच के बेई साड़ू अब का कल्लँय। ००० डटे भीड़ […]
काव्यभाषा
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