युगों युगों से सहते आये नारी की व्यथा करुणा है, अबला नही अब सबला है ये दुर्गा लक्ष्मी वरुणा है। द्रौपदी आज बीच सभा चीत्कार रही, कितनी सारी निर्भया खून के आसूं बहा रही। चीर हरण अब रोज होता कृष्ण नही अब आते हैं, छोटे छीटे मासूम भी हवस की […]
काव्यभाषा
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