सांझ के रवि की तरह ढलकर मैं सो गया हूं। लगता है जैसे अब मैं बूढा हो गया हूं॥ तन का उत्साह भी खत्म-सा होने लगा है। मन पुष्प फिर से बचपन बीज बोने लगा है॥ नयनों का प्रकाश भी अब हो कम-सा गया है। सांसों का सैलाब भी अब […]

हसीं ज़ज़्बात का दिल में ठिकाना भी ज़रूरी है, छुपाना भी ज़रूरी है जताना भी ज़रूरी है। बिखरता है नहीं यूँ ही !उजाला इश्क़ का यारों, मुहब्बत में ये दिल अपना जलाना भी ज़रूरी है। उन्हीं बातों को दुहराने से होगा कुछ नहीं हासिल, गई जो रात तो फिर बात […]

ओ मुसाफिर सँभल के चल, पीछे लग रही धूल है रास्ते में सब है अपना, ये तुम्हारी भूल है। जिसको तूने अपना, छोड़ा बीच राह पे भूल बैठा तुम यहाँ पे, तुम तो हो एक अजनबी। ओ मुसाफिर…॥ अपने पे विश्वास रखो तुम, मंजिल न अब तेरी दूर है इस […]

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चाहे तुम जीतो जग को, मगरुर कभी मत होना। होना पड़े विमुख इतने मजबूर, कभी मत होना। निज पलकों पर भले बिठा लो, कोई चंद्रमुखी तुम। माता-पिता के चरणों से तुम, दूर कभी मत होना॥                               […]

चपला चम-चम चमकी जावे, बरखा रिमझिम बरसी जावे.. बदरा उर में आन समावे। बदरा घोर-घोर जावे, बदरा घोर-घोर जावे॥ पुरवैया के शीतल झोंके, तन मोरे से लिपटे जावे.. चपल हठीली बिजुरी ताने, मन मोरे सिमटे जावे। बैरन चमक-चमक चपलावे, जियरा मोरा हा! डर पावे। बदरा घोर-घोर जावे, बदरा घोर-घोर जावे॥ […]

वह आदिवासी लड़की जिसे समझते हैं लोग असभ्य और समझते हैं कि उसके सर में भूसा भरा होता है, जो लीपती है रोज़ गोबर से सने हाथों से घर-आंगन।   जिसे अधिकार नहीं है चूल्हे-चौके से आगे कुछ करने का न ही देहरी लांघ लंबी घुमावदार सड़कों पर अल्हड़-सा बचपन जीने काl, जो सूरज की तपिश निगल जलाती है अपना बदन।   अथक काम करते खेतों में जिसे मजबूरी में कभी रखना पड़ता है गिरवी अपना कुंवारापन, शहरी बाबुओं की भूखी लपलपाती निगाहों के आगे सच मानिए, छूना चाहती है वह भी चमकते चाँद-सितारे, दौड़ना चाहती है वह भी खुले विस्तृत आकाश में अपने रंग-बिरंगे सपनों के पीछे।   चाहती है वह भी, चमत्कृत कर देना पूरी दुनिया को अपने हाथों से रचकर एक प्रेम कविता परंतु,क्या इस सभ्य सुसज्जित समाज में `हासिल` कर पाएगी वह ऐसी दुनिया…l   दुख-दर्द,शर्म-मायूसी से उठकर, क्या एक करनैल का फूल शोभा पा सकेगा, एक स्वस्थ सम्मानित माहौल में… या फिर दम तोड़ देगी वह भी घुटकर अपने मृत होते सपनों के साथ …ll    #डॉ. आरती कुमारी परिचय : […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।