. १ वरुण देव को सुमिर के,नमन करूँ कर जोरि। सागर वंदन मैं लिखूँ, जैसी मति है मोरि।। . २ जलबिनथल क्या कल्पना, सृष्टा *रत्नागार*। वरुणराज तुमसे बने , वंदन *नीरागार*।। . ३ अगनित नदियां उमड़के,आती चली *नदीश*। सब तटिनी तट तोड़नी, रम जाती *बारीश*।। . ४ विविधरूप जीवन सरे,प्राणप्रिय […]
