पिता संभालते, घर परिवार उनसे घर का, सुखी संसार। घर बाहर की, चिन्ता रखते वो घर के, सच्चे कर्णधार। वो अर्थ धुरी, बनकर रहते हर संभव, सुविधाएं देते। दृढ निश्चय, उत्साह अडिग, सहते अभाव, न कुछ कहते। पिता विशाल, बरगद स्वरूप फैली छाया का ,सुखद रूप। नीड़ों में, सुरक्षित बाल […]
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मैंने तो सिर्फ आपसे प्यार करना चाहा था ख़ाहिश-ए-ख़लीक़ इज़हार करना चाहा था धुएँ सी उड़ा दी आरज़ू पल में यार ने मिरि तिरा इस्तिक़बाल शानदार करना चाहा था भले लोगो की बातें समझ न आईं वक़्त पे मैंने तो हर लम्हा जानदार करना चाहा था तिरे काम आ सकूँ इरादा था बस इतना सा तअल्लुक़ आपसे आबदार करना चाहा था इंतिज़ार क्यूँ करें फ़स्ल-ए-बहाराँ सोचकर चमन ये ‘राहत’ खुशबूदार करना चाहा था #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 28
