अक्सर ही हम, रोना रोते रहते हैं अपनी फूटी किस्मत का, चाहे हमको मिला हो कितना भी,अधिक क्यों नl नहीं होता आत्मसंतोष, कभी भी हमको। चाहते ही हैं- और अधिक,और अधिक। ये कैसी चाहत है,सोचा है कभी! […]
(आधारछंद,विधान-२२ मात्राएँ) रहे भले ही दूर,मगर उर पास रहे, जीवन कुसुमित पुष्प,सदा मधुमास रहेl प्रिय कलिका सौंदर्य,बसाएँ अंतस में, खिले अधर मुस्कान,हृदय उल्लास रहेl सदा धीर-गंभीर,प्राप्त अवसादों को, चलें उम्र को भूल,अधर परिहास रहेll जुड़े हृदय के तार,विलगता विस्मृत हो, वह है सच्चा प्रेम,जहाँ विश्वास रहेl पंचम स्वर की तान,बनाती […]
