जानकर तेरा पता खुद लापता हूँ आजकल, स्वप्न आँखों में बहुत,सो जागता हूँ आजकल। लाख मंजिल पा के भी फिर लौट घर ही आना है, पीछे रह जाने के डर से भागता हूँ आजकल। मंदिरों-न मस्जिदों से अर्थ है आवाम का, बेचना अखबार है,दंगे छापता हूँ आजकल। मिलन-फागुन-चूड़ी-कंगन पर सभी […]
काव्यभाषा
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