जो ज़िन्दा था ज़माने में,उसी को मार आए हो, बहुत नादान लगते हो,सभी कुछ हार आए हो। ग़रीबों पर दया करते,बुज़ुर्गों की दवा करते, ख़ुदा को भूलकर मस्जिद में अब बेक़ार आए हो। ज़रा-सा शायरी करना सुख़नवर से नहीं सीखा, अभी से शोहरतें पाने भरे दरबार आए हो। जिसे यारों […]
काव्यभाषा
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