जन्नत के बहाने क्यों दोज़ख़ की तरफ़ ले जाते हो ए जिहाद वालों क्यों तुम मासूमो को बरगलाते हों। बताओ कौन से ख़ुदा ने कहा है पाक है क़त्ल-ए-इंसाँ ख़ुदाई में वो अपनी मोहब्बत करने को तुमसे कहता है। हूर की बात तुम करते हो जो जन्नत में मिलेगी पर क्यों छुपाते हो, दोज़ख़ भी न मिलेगा इस ख़ूनी खेल के बाद। इशरत-ए-इंसाँ है मोहब्बत में मिट जाना फिर क्यों नफ़रत में जल के औरों को जलाते हो। साजिशों में क्या रखा हैं गुनाहों के अलावा क्यों तुम इस कायनात में गड़बड़ी फैलाते हो। फ़राइज़ तले गुज़ारिश है तुमसे जिहाद वालों छोड़कर राह-ए-कुफ़्र अमन से ज़िंदगी बिता लो। #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 22

कुछ लोग मंदिर को मदिरालय से मस्जिद को मय-ख़ाने से जोड़ गए आस्था से खेला संवेदनाओं को चक्कर में छोड़ गए और नासमझ मनुष्य मंदिर से मदिरालय के मस्जिद से मय-ख़ाने के रिश्ते पर यकीं कर बैठा   #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 17

तारे घबराते हैं शायद इसीलिये टिमटिमाते हैं सूरज से डरते हैं इसीलिये दिन में छिप जाते हैं। चाँद से शरमाते हैं पर आकाश में निकल आते ह़ैं तारे घबराते हैं शायद इसीलिये टिमटिमाते हैं। लोग कहते हैं अंतरिक्ष अनंत ह़ै लेकिन मैंने देखा नहीं मैं तो केवल इतना जानता हूँ सूरज बादल में छिप जाता है चाँद बादल में छिप जाता है सो तारे जब डरते शरमाते होंगे बादल में छिप जाते होंगे। तारे घबराते हैं शायद इसीलिये टिमटिमाते हैं।   #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 21

गुल की मुस्कुराहट पल दो पल की शाख़ से उसे जुदा होना है अपने नशेमन से बिछड़ के किसी के अरमान सँजोना है। ज़ुल्फ़ों पे सज के तो कभी दैर-ओ-हरम में करना है बयाँ पैग़ाम यही है करम में। तड़प-ए-फ़ुर्क़त भूल के महकना है ग़म में भी ख़ुशी में भी बस… दूसरों के लिए। #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 20

कैसा हो मायका कहते है….. माँ बिना कैसा मायका ? मैं कहती हूँ….. भाई बिना नहीं मायके का जायका I कहते है….. घर की दीवारें बचपन की याद दिलाती है I मैं कहती हूँ….. भाई तेरी एक हँसी मेरा बचपन नया कर जाती है I कहते है….. मैके की चाह […]

माना कि हालात बेकाबू हो गए कई बार जब भी वक़्त नासाज हुआ हर बार भरोसा रखा मैंने  या ख़ुदा तेरे भरोसे को क्या हुआ कभी लगता है सँभल गया कभी यों ही बिगड़ गया वक़्त ऐसा  जैसे रेत का बुत मुठ्ठी से फिसल गया रोकना तो चाहा हमेशा पर लम्हा इतना अजीब है क्यों न समझ सका वो तड़प दिल की  साथ रहकर भी छोड़कर तुम जहां से गए थे  मैं आज भी वहीँ खड़ा हूँ यूँ तुम तो सम्हल गए होंगे मैं आज भी बिखरा पड़ा हूँ इस दिल में रहोगे ता-उम्र फिर क्यूँ डरते हो पाक है मोहब्बत मेरी यूँ नजरे चुरा के ना निकलो इंतिज़ार है तेरे इक इशारे का आगे खूबसूरत जहाँ पड़ा है तेरे बिना वर्ना दर्द का दरिया ‘राहत’ आँखों से बहता है   #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 12

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।