विधान~ [{मगण भगण नगण तगण तगण+22} ( 222 211 111 221 221 22) 17 वर्ण, यति 4, 6,7 वर्णों पर, 4 चरण [दो-दो चरण समतुकांत] माया रानी , मृदुल रजनी , नींद विश्रान्ति लाई ! आँखें चाहे, सघन रस की, कोख उद्भ्रांति छाई! डूबी काया , अथक गहरी , पीर […]
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अग्नि ,मधु विधा ,सामोपासना,प्राणोपासना के द्वारा अतिइन्द्रिय ग्राह्य को इन्द्रिय ग्राह्य बनाने की चेष्टा मानव के जीवन की सबसे बड़ी अभिलाषा रही है इसी कारण ब्रह्म की निराकारिता को खंडित किये बिना तादात्म्य स्थापित करने की गूढ आत्मीय चेतना का रहस्यमयी आभास रसानुभूति है! यह दशा मानवता की उच्चस्तरीय सीढ़ी […]