देख समय ने पलटी खायी, मोबाइल के दर्शन भोर। साहुकार बंदिश में रहते, खुले डोलते डाकू चोर। पहले शहरों में बसती अब, कविता चली गाँव की ओर। अखबारों का युग बीता है, टीवी धुँधले होते आज। कथा कहानी पुस्तक पढ़ना, रीत बीत कर बिगड़े काज। वाट्स एप हर जन हर […]
babulal
*पूजा की थाली सजती है* *अक्षत पुष्प रखें रोली।* *काव्यजगत में ध्रुव सी चमके,* *कवि प्रिया,काव्य रंगोली।* . *हिन्दी साहित सृजन साधना,* *साध करे भाषा बोली।* *कविता गीत गजल चौपाई,* *लिखे कवि काव्य रंगोली।* . *दोहा छंदबद्ध कविताई,* *मुक्तछंद,प्रीत ठिठोली।* *प्रेम रीति शृंगार सलौने,* *पढ़ि देख काव्य रंगोली।* . *लिखे […]