कभी मत सोचना साजन हिया से दूर जाने कीll पिया से दूर रहकर क्यों जिया बेचैन होता है, मनोरथ व्यर्थ हो जाता किसी का चैन खोता है। हृदय में चाह रहती है सदा प्रिय को लुभाने कीll चली ठंडी हवा देखो लिए मधुगन्ध फूलों की, […]
सभ्यते नियति-अभिशप्त ग्रीष्म परितप्त, अर्द्घ-नग्न पर्वत को सुनहली मदिरा पिलाकर, आलिंगन में बाँधकर दिगम्बर क्यों बनाती हो? उसके शुष्क श्यामल व्यथित पल-पल गगन में लहराते कुन्तलों को, कुल्हाड़ियों से काट-काटकर क्यों अपने को सजाती हो? उसके हृदय के ज़़ज़्बाती शोणित को क्यों अपने पांवों का महावर बनाती हो? अपने उच्छिष्ट […]
हे माधव, कहाँ…हो आओ.. हे ..नाथ भूल चुके हैं पार्थ। कर्म ..की ..गीता कर्तव्य..से..रीता धर्म का आवाहन् नहीं ..रहा..पावन। जब…. कि , पाप ..का ..सूरज ..चढ़ा है, जयद्रथ ने चक्रव्यूह गढ़ा है महाभारत की पृष्ठभूमि तैयार है कुरुक्षेत्र.. में ..रण.. हुंकार … है। किन्तु …गांडीवधारी अर्जुन, मोह.. की ..माया ..से […]