शाला हमको लगती प्यारी। हम हैं पौधे, वो है क्यारी॥ खेल-खेल में सीखें अब। डंडे नहीं लगते अब॥ करके सीखें,बारी-बारी। शाला हमको लगती प्यारी॥ हमें गुरूजी करें दुलार। माँ जैसा उनका है प्यार॥ नहीं किताबें हम पर भारी। शाला हमको लगती प्यारी॥ शाला रोज जाते हम। ज्ञान का दीप […]
प्रकृति स्वयं में सौम्य सुशोभित,सुन्दर लगती है। देख समय अनुकूल हमेशा,सोती-जगती है॥ जब मानव की छेड़खानियाँ,हद से बढ़ जाती। जग जननी नैसर्गिक माता,रोती बिलखाती॥ लोभ मोह के वशीभूत हो,जब समता घायल। बिन्दी पाँवों में गिर जाती,माथे पर पायल॥ अट्टहास कर मानव चुनता,जब उल्टी राहें। महामारियाँ हँसकर गहतीं,फैलाकर बांहें॥ चेचक हैजा […]
