आया फागुन बदला मौसम, खिल गई धरती और खिले हम। विहंसी नदिया सात समंदर, साज सजे धरती नित सुंदर। फूली सरसों,गेहूं हरसाया, चना-मटर संग रास रचाया। मादकता भरी हवा के अंदर, साज सजे धरती नित सुंदर। सहज प्रेम का मौसम है यह, विरही हृदय कहे कुछ रह-रह। हुआ आबाद जो […]
कितनी कलियों को जगाया मैंने, कितनी आत्माएँ परश कीं चुपके; प्रकाश कितने प्राण छितराए, वायु ने कितने प्राण मिलवाए। कितने नैपथ्य निहारे मैंने, गुनगुनाए हिये लखे कितने; निखारी बादलों छटा कितनी, घुमाए फिराए यान कितने। रहा जीवन प्रत्येक परतों पर, छिपा चिपका समाया अवनी उर; नियंत्रित नियंता के हाथों में, […]