बस फैला अत्याचार है

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sampada

कर्मठता की राह
छोड़कर,
तुम इतना जो अधीर
हो रहे।
कायरता की बात
सोचकर,
तुम इतना जो फ़कीर
हो रहे।
शिथिलता के आलम्ब
में,
नहीं कोई विस्तार है।
यहाँ-वहाँ हर कहीं बस
फैला अत्याचार हैll 
 
तुम जिनके शरणागत हो,
उनका खुद ही नहीं ठिकाना।
नित्य नए प्रपंच हैं रचते,
द्रव्य ही उनका मुख्य निशाना।
उनके उस अपने उधम में,
आत्महीन प्रसार है।
यहाँ-वहाँ हर कहीं बस फैला
अत्याचार हैll 
 
धर्म की आड़ में लूट रहे हैं,
एकदम से वे झूठ रहे हैं।
झूठा स्वाँग रचे हैं हरदम
अंदर-अंदर टूट रहे हैं।
विधि की नैसर्गिकता का
नहीं कोई उपचार है।
यहाँ-वहाँ हर कहीं बस 
फैला अत्याचार हैll 
 
नित्य-नए अपराध में लिप्त,
नारी अस्मिता से कर रहे
खिलवाड़।
ध्येय से अपने एकदम हटकर
नहीं कर रहे कोई निर्माण।
उनकी इन दुष्वृत्तियों पर,
एकदम से धिक्कार है।
यहाँ-वहाँ हर कहीं बस फैला
अत्याचार हैll 
 
कर्मठता की ज्योति जला लो,
खुद ही लिख लो अपनी तकदीर।
भाग्यवान हो जाओगे तुम,
मत हो अभी इतने अधीर।
जीवन में आगे जाने का बस,
यही एक प्रकार है।
यहाँ-वहाँ हर कहीं,
बस फैला अत्याचार हैll 
#सम्पदा मिश्रा
परिचय : सम्पदा मिश्रा की जन्मतिथि-१५ नवम्बर १९८० और जन्म स्थान-महाराष्ट्र है। आप शहर- इलाहाबाद(राज्य-उत्तर प्रदेश) में रहती हैं। एम.ए. एवं बी.एड. तक शिक्षित सम्पदा जी का कार्यक्षेत्र-बतौर प्रवक्ता अर्थशास्त्र(डाईट-इलाहाबाद) है। आपकी विधा-गद्य एवं पद्य है। आप स्वर्ण पदक विजेता हैं और लेखन का शौक है। लेखन का उद्देश्य-समाज को नई दिशा देना है।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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