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सब हेडिंग-राष्ट्रीय कवि चौपाल में ‘स्वागतम दीपोत्सव’ एवं डॉ. कलाम के जन्मदिवस पर हुआ कविताओं का वाचन
बीकानेर। राष्ट्रीय कवि चौपाल की ११५ वीं कड़ी रविवारीय को पंचवटी सादुल स्कूल भ्रमण पथ स्थित मैदान में आयोजित की गई। कार्यक्रम में स्वागतम दीपोत्सव एवं पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को समर्पित त्रिभाषा काव्य गोष्ठी रखी गई। इस अवसर पर दीपावली और अब्दुल कलाम के कार्यों पर आधारित रचनाओं का वाचन नगर के तीन पीढ़ी के तीन भाषा के रचनाकारों द्वारा किया गया।
संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष शायर क़ासिम बीकानेरी ने बताया कि, कार्यक्रम मे मुख्य कवि के तौर पर हास्य व्यंग्य के वरिष्ठ कवि विजय धामिजा ने अपनी हास्य व्यंग्य कविताओं के माध्यम से जहां एक तरफ श्रोताओं को हंसा- हंसाकर लोटपोट कर दिया,वहीं सामाजिक संदेश देकर उन्हें सही रास्ते पर चलने की सीख भी दी। आपकी इन कविताओं ने श्रोताओं को भरपूर गुदगुदाया- ‘कल रात सपने में मेरी श्रीमती जी ने एक थप्पड़ मारा,आओ मिलजुल कर देखें अखंड भारत का सपना, रसोई की कड़ाही, पागल-सा आदमी, मूर्ख पति, परियां उड़ती है, गधे की सवारी, यह मेरी जान है,यह मेरे वर है, यह मेरे जानवर है’ जैसी रचनाओं ने श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता अधिशासी अभियंता पंकजसिंह ने अपने उद्बोधन द्वारा पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को श्रद्धांजलि अर्पित की। आपकी त्योहार दीपावली पर आधारित कविता की यह पंक्तियां ख़ूब सराही गई- ‘चंचला है वह मेरे घर क्यूं जाएगी /जो घर होगा जितना रोशन उसके घर में जाएगी।’
मुख्य अतिथि वरिष्ठ रंगकर्मी बी.एल. नवीन ने जहां अपने मधुर गीत से मधुरता घोली, वहीं राष्ट्रीय कवि चौपाल की उन्नति की कामना की। नौजवान शायर शाहबाज हसन ने अपना ये शे’र सुनाकर वाहवाही लूटी- ‘ख्वाबों से परे हकीकत में मिला करो/ दिलबर कहीं उल्फत से मिला करो। ‘ कार्यक्रम का संचालन करते हुए कासिम बीकानेरी ने अपने शे’रो-सुख़न के माध्यम से भगवान राम के मर्यादा पुरुषोत्तम रूप को सामने रखा। आपके गीत की ये पंक्तियां ख़ूब पसंद की गई-‘शबरी के झूठे बेर खाए राम जी/दीन दुखियों के काम आए राम जी।’ आपने अपनी ग़ज़ल के इस शे’र के माध्यम से चिराग़ रोशन करने की बात कही-‘हवाएं ज़ुल्म की उनको बुझा नहीं सकती / खड़े हैं जो भी मुक़ाबिल यहां हवा के चिराग़।’ कार्यक्रम में संस्था के राष्ट्रीय महामंत्री श्यामसुंदर हाटीला ने स्वागत भाषण देते हुए दीपावली पर्व के महत्व एवं पौराणिक इतिहास को सामने रखा। संस्था संरक्षक नेमचंद गहलोत ने भी अपनी हास्य व्यंग्य कविता से श्रोताओं को भरपूर हंसाया। कार्यक्रम में बाबूलाल छंगाणी ने- ‘इसी दिवाली मैं मनाऊं क्यों ?’,अब्दुल जब्बार बीकाणवी ने- ‘दिवाली का त्यौहार प्यार मोहब्बत का त्यौहार है’ और कैलाश टाक ने दीपावली पर हास्य रचना- ‘जब भी दिवाली आती है पास काम करने पड़ते हैं कुछ /नहीं तो श्रीमती जी हो जाती है उदास’ के माध्यम से श्रोताओं को खूब हंसाया। घनश्याम सिंह ने ‘एक वो भी दिवाली थी एक ये भी दिवाली है’ कविता सुनाई तो मधुरिमा सिंह ने कलाम को समर्पित कविता-‘हर आदमी का जन्म किसी न किसी उद्देश्य के लिए होता है’, वैद्य गोपीचंद ‘प्राणेश’ ने- ‘आ दिवाली’ रचना के माध्यम से काव्य गोष्ठी को परवान चढ़ाया। कवियित्री कृष्णा वर्मा और सरोज भाटी ने सरस्वती वंदना की इन पंक्तियों से बेहतरीन शुरुआत की- ‘वीणा वादिनी दर्श दिखा दो मन वीणा के तार सजा दो /अंधेरा छाया है घनेरा /ज्ञानदीप की ज्योत जला दो।’ कवि जुगल किशोर पुरोहित ने ‘दीवाली के दीप दीप से रोशन हो हर गांव शहर घर’ रचना से दीपोत्सव पर घर, गांव शहर में दीपक जलाने का संदेश दिया। डॉ. प्रकाश चंद्र वर्मा,बच्छराज सोनी,माजिद ख़ान ग़ौरी,धर्मेंद्र राठौड़ और पुखराज सोलंकी सहित शिव प्रकाश शर्मा, नरेश कुमार खत्री और मोहन वैष्णव की कविताएं भी पसंद की गई।
कार्यक्रम में प्रशांत जैन, किशननाथ ‘खरपतवार’, लीलाधर सोनी, डॉ.तुलसीराम मोदी,के.के. सैनी,गोपाल स्वर्णकार,रामेश्वर सोनी,राजाराम बिश्नोई,फ़ज़ल मोहम्मद,नेमीचंद पंवार रामकुमार और डॉ.ब्रह्माराम चौधरी सहित अनेक श्रोतागण मौजूद थे।
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